अकà¥à¤¸à¤° सà¥à¤•à¥‚ल आते-जाते उस गढà¥à¤¢à¥‡ पर मेरी नजर पड़ ही जाती थी। हम जब à¤à¥€ उधर से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡, तो वह à¤à¤• बाधा-सा पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता। घर से सà¥à¤•à¥‚ल की दूरी यही कोई किलोमीटर à¤à¤° रही होगी। दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के साथ पैदल सà¥à¤•à¥‚ल जाने का आननà¥à¤¦ ही कà¥à¤› और था और आननà¥à¤¦ दà¥à¤—à¥à¤¨à¤¾ तब हो जाता जब पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ जा रासà¥à¤¤à¤¾ शॉरà¥à¤Ÿà¤•à¤Ÿ निकाल लिया गया हो।
रासà¥à¤¤à¥‡ में पड़ा वो गढà¥à¤¢à¤¾, जाने कà¥à¤¯à¥‹à¤‚, उस ओर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ सà¥à¤µà¤¤à¤ƒ खींच ही जाता था। याद है मà¥à¤à¥‡ जब हमारा सà¥à¤•à¥‚ल गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठबंद होने वाला था, सà¥à¤•à¥‚ल सतà¥à¤° का आखिरी दिन था, हम सà¤à¥€ मितà¥à¤° ख़à¥à¤¶à¥€ से घर लौट रहे, उसी शॉरà¥à¤Ÿà¤•à¤Ÿ वाले रासà¥à¤¤à¥‡ से जिसे हमने खà¥à¤¦ ही ढूंॠनिकला था।रासà¥à¤¤à¥‡ में पड़ा वो गढà¥à¤¢à¤¾, जिसे कूड़े-करकट से à¤à¤° दिया गया था, आज बहà¥à¤¤ ही गनà¥à¤¦à¤¾ दिखा।वक़à¥à¤¤ बिता, छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾à¤ खतà¥à¤®à¥¤ नये सतà¥à¤° की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤, मन में उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹, नयी ककà¥à¤·à¤¾ में जाने की उमंग लिये, घर से निकले। 16 जून, सà¥à¤•à¥‚ल का पहला दिन।सà¥à¤•à¥‚ल जाते वक़à¥à¤¤ रासà¥à¤¤à¥‡ में मेरी नज़र आदतन उस गढà¥à¤¢à¥‡ पर पड़ी। अरे! अब तो नजारा बदल चà¥à¤•à¤¾ था, बारिश ने उसे अपने जल से उसे à¤à¤° दिया था। अब वह à¤à¥€ समतल- सा लगने लगा था। उसमें à¤à¤°à¥‡ कचड़े à¤à¥€ अब बह चà¥à¤•à¥‡ थे। वह अब à¤à¤• छोटा-सा जलकà¥à¤‚ड बन चूका था। यह देख, मन में तà¥à¤°à¤‚त ही विचार आया कि मैं वापिस घर जाते वक़à¥à¤¤ यहाठजरà¥à¤° खेलूंगी।
हà¥à¤† à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ ही, सà¥à¤•à¥‚ल से घर जाते वक़à¥à¤¤, जब हलà¥à¤•à¥€-हलà¥à¤•à¥€ बारिश हो ही रही थी, मैं अपने बसà¥à¤¤à¥‡ जो किनारे कर, जूते-मोज़े खोल, उस गढà¥à¤¢à¥‡ में अपने पैरों को डाल, खेलना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया।मà¥à¤à¥‡ देख मेरे मितà¥à¤° à¤à¥€ वहाठहो लिये। हों à¤à¥€ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न?... पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ में बड़ी मादक महक होती है, जो अपनी सà¥à¤°à¤à¤¿ से सारे परिवेश में ताजगी à¤à¤° देती है। जब खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की शोà¤à¤¾à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾ निकलती है तो खिलखिलाते हà¥à¤ सहयातà¥à¤°à¥€ à¤à¥€ जà¥à¤Ÿ ही जाते हैं। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उलà¥à¤²à¤¾à¤¸ का काफिला बनते देर नहीं लगतीये बातें तो बचपन की थीं, जो मà¥à¤à¥‡ मातà¥à¤° आननà¥à¤¦ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के साधन से लगते थें। लेकिन अब जब कà¤à¥€ विचार करती हूà¤, तो à¤à¤• शोर, दà¥à¤µà¥‡à¤·, à¤à¥à¤°à¤®, कोलाहल मन को विचलित करता है। यह विचार कि कà¥à¤¯à¤¾ जीवन रूपी राह में आये ये गढà¥à¤¢à¥‡ यूà¤à¤¹à¥€ खाली रह जायेंगे, कà¥à¤¯à¤¾ हम यूà¤à¤¹à¥€ इनमें अवसाद रूपी कूड़े-करकट डालते रहेंगे।सोचकर परेशान होने लगती हूठकि जीवन में जो à¤à¤• अथाह खालीपन, नीरसता, अवसादों का कचड़ा à¤à¤°à¤¾ पड़ा है,खाली उस गढà¥à¤¢à¥‡ की तरह, जो सालों à¤à¤° यूà¤à¤¹à¥€ सà¥à¤–ा पड़ा रहता है, बस इसी इंतज़ार में कि कब पà¥à¤°à¥‡à¤® रूपी जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की वरà¥à¤·à¤¾ हो और संग अपने ये सारी अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ रूपी गढà¥à¤¢à¥‡ में पड़े कचड़े को बहा ले जाà¤à¥¤
वो नज़ारा सà¥à¤µà¤¤à¤ƒ अपनी ओर आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करता जब वरà¥à¤·à¤¾ का जल धरती पर गिरते ही सबसे पहले दौड़ती है उन गढà¥à¤¢à¥‹à¤‚ को à¤à¤°à¤¨à¥‡ के लिठजो कब के खाली पड़ थे। सदा के लिठकà¥à¤› खाली नहीं होता। इसीलिठतो कहने को जी चाह.....
सैलाब न सही, फà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡à¤‚ तो होंगी,
उमà¥à¤®à¥€à¤¦ के गलीचे पे सितारें तो होंगी,
देखो तो à¤à¤° कर बाà¤à¤¹à¥‹à¤‚ में रोशनी,
चाà¤à¤¦ न सही,जà¥à¤—नू की कतारें तो होंगी।।