गाà¤à¤µ की दहलीज तक,
मेहमान अब आते नहीं।
à¤à¥‹à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में; बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के,
सामान तक लाते नहीं।।
'खास' किसà¥à¤®à¥‹à¤‚ के फलों को,
à¤à¥‹à¤²à¥‡ में लाते रहे 'वे',
आज-कल वो à¤à¥‚लकर à¤à¥€,
'आम' तक लाते नहीं।।
दे दिलासा कह गये जो,
कल सà¥à¤¬à¤¹ फिर आऊà¤à¤—ा।
दिन ढला जाता मगर 'वो',
शाम तक आते नहीं।।
कà¥à¤› पता चलता नहीं कि,
कà¥à¤¯à¤¾? खता हमसे हà¥à¤ˆà¥¤
आज कल अपनों से अपने,
दिले-राज बतलाते नहीं।।
सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ के चशà¥à¤®à¥‡à¤‚ लगाकर,
सब हà¥à¤ अंधे 'रमन'।
कौन है? अपने पराये,
नजर में वो आते नहीं।।