डॉ. नरेश अग्रवाल के प्रेरक विचार

काम
छोटे-छोटे पल मिलकर, एक दिन और फिर एक वर्ष बनते हैं, इन छोटे-छोटे पलों में किये गये काम, वर्षों में बड़े दिखाई देते हैं। 


जल्दबाजी
जल्दबाजी से हमारे दवारा किये गये कार्य ओस की तरह हल्के होने लगते हैं। ये बजाए हमें कुछ देने के, हमारा साथ छोड़ने लगते हैं। 
 

रास्ते
जो रास्ते आसान होंगे, वहाँ हमेशा भीड़ दिखाई देगी और मुश्किल रास्ते हमेशा सुनसान। 
 

उपलब्धियाँ
जिस तरह से उपलब्धियों के पीछे हम भाग रहे होते हैं, उपलब्धियाँ भी हमारे पीछे भाग रही होती है। मजबूत हाथों को वजनदार उपलब्ध्यिाँ मिलती हैं एवं कमजोर को हल्की।
 

स्मृति
होंठ बन्द कर लेने से बात वहीं खत्म हो जाती है। यादों को भूला दिये जाने से दुख कुछ कम। इस तरह से स्मृति को विस्मृति में बदलने की कला विवादों को नष्ट कर देती है। 
 

तरीका
सभी का अपना-अपना कोई प्रिय तरीका होता है, सुरक्षा एवं आराम की स्थिति में रहकर काम करने का। इससे दूर होने या अवरोध होने पर उन्हें कष्ट होता है। 
 

बुद्धिमान
बुद्धिमान शुरू से ही जानते हैं कि यह रास्ता उनके हक में नहीं है और मूर्ख ठोकर खाने के बाद।

 


लेखक परिचय :
डॉ. नरेश अग्रवाल
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