तुम्हारा ऋण

रात जिसने दिखाये थे
हमें  à¤¸à¥à¤¨à¤¹à¤°à¥‡ सपने
किसी अजनबी प्रदेश के
कैसे लौटा पायेंगे
उसकी स्वर्णिम रोशनी

कैसे लौटा पायेंगे
चॉंद- सूरज को उनकी चमक
समय की बीती हुई उम्र
फूलों को खुशबू
झरनों को पानी और
लोगों को उनका  à¤ªà¥à¤¯à¤¾à¤°

कैसे लौटा पायेंगे
खेतों को फसल
मिट्टी को स्वाद
पौधों को उनके फल

ऐ! धरती तुम्हीं बताओ
कैसे चुका पायेंगे
तुम्हारा इतना सारा ऋण।

 


लेखक परिचय :
डॉ. नरेश अग्रवाल
फो.नं. -+91 9334825981
ई-मेल - [email protected]
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