‘टेसà¥à¤Ÿ टà¥à¤¯à¥‚ब’ फसल उगाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ लगà¤à¤— 25 वरà¥à¤·à¥‹ से चल रहा है। परनà¥à¤¤à¥ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ तथा विदेशी वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• इस पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ में पूरà¥à¤£ सफलता अà¤à¥€ हाल ही में पा सके हैं। इस पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ को ‘ऊतक’ संवरà¥à¤§à¤¨ (टिशà¥à¤¯à¥‚ कलà¥à¤µà¤°) के नाम से जाना जाता है। इसमें पौधे के किसी ऊतक को उचित माधà¥à¤¯à¤® में रखते हैं, यहाठइसका विकास होता है। कोशिकाओं की विà¤à¤¾à¤œà¤¨-पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ऊतक आकार में बà¥à¤¨à¥‡ लगता है। अब इन कोशिकाओं को साधारण माधà¥à¤¯à¤® वातावरण में रख कर पà¥à¤¨à¤ƒ मà¥à¤–à¥à¤¯ पौधे के रूप में विकसित किया जाता है। यह पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ बहà¥à¤¤ तेजी से होती है। à¤à¤• छोटे से आकार के कमरे में उचित माधà¥à¤¯à¤® तथा नियंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ तापकà¥à¤°à¤® पर रखे हà¥à¤ कà¥à¤› ऊतकों से लगà¤à¤— तीन-सौ करोड़ तक ऊतक तैयार किये जा सकते हैं।
जब किसी पौधे का कोई ऊतक (तना, पतà¥à¤¤à¥€, जड़ आदि में से) उससे बाहर निकाला जाता है तो इसमें साधारणतः जीवाणॠ(बैकà¥à¤Ÿà¥€à¤°à¤¿à¤¯à¤¾) अथवा फफूंद उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ में, जिसमें धातà¥, शकà¥à¤•à¤°, हारमोन तथा विटामिन हों, बड़ी तेजी से बà¥à¤¨à¥‡ लगते हैं। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से अलग किये गये पौधे के ऊतक को तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ ही पहले से तैयार माधà¥à¤¯à¤® में रख दिया जाता है। इस विधि के पà¥à¤°à¤¥à¤® चरण में इस माधà¥à¤¯à¤® को अनà¥à¤¯ जीवाणà¥à¤“ं से मà¥à¤•à¥à¤¤ किया जाता है। ताकि उनमें किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का विकार न लगने पाà¤à¥¤ इस विधि से पौधों की उपज को तेजी से बà¥à¤¾à¤¯à¤¾ जा सकता है।
टेसà¥à¤Ÿ टà¥à¤¯à¥‚ब पौधे तैयार करने के लिठउचित माधà¥à¤¯à¤® तैयार करने की सारी पदà¥à¤§à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ विकसित की गयी हैं। परनà¥à¤¤à¥ सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ होने वाला माधà¥à¤¯à¤® वह है जिसे केलिफोरà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के तोशियो मà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤—े ने विकसित किया है। उस माधà¥à¤¯à¤® में विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पोषक अथवा रासायनिक यौगिक उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रहते हैं। यह माधà¥à¤¯à¤® दà¥à¤°à¤µ के रूप में है। यदि इस माधà¥à¤¯à¤® को अरà¥à¤§-ठोस के रूप में पà¥à¤°à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ करना है तो इसमें à¤à¤• विशेष रासायनिक घोल मिला कर इसे अरà¥à¤§-ठोस का रूप दिया जा सकता है। अरà¥à¤§-ठोस माधà¥à¤¯à¤® में अविà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ कोशिकाओं का समूह बनता है जब कि दà¥à¤°à¤µ माधà¥à¤¯à¤® में कोशिकाओं का निलंबन तैयार होता है। इन दोनों ही अवसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं में पौधे के किसी à¤à¥€ à¤à¤¾à¤— को पहचाना नहीं जा सकता कि किस कोशिका से तना विकसित होगा।
अब इन ऊतकों के विà¤à¤¾à¤œà¤¨ के लिये इनमें ऑकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ तथा साइटोकिनिन जैसे हारमोन मिलाये जाते हैं। विà¤à¤¾à¤œà¤¨ के बाद कोशिकाओं में जड़ तथा तने का विकास आरमà¥à¤ होने लगता है। जड़ के विकास के लिये ऑकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ तथा तने के विकास के लिठ“ साइटोकिनिन” जो ‘पà¥à¤¯à¥‚रिन’ का à¤à¤• पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° है, उदà¥à¤¯à¥€à¤ªà¤¨ कारà¥à¤¯ करते हैं जब यह पौधा लगà¤à¤— दस मिलीमीटर लमà¥à¤¬à¤¾ हो जाता है। अब इसमें नयी शाखाà¤à¤‚ तेजी से निकलने लगती हैं। इन शाखाओं को पृथक कर के नये माधà¥à¤¯à¤® में रखते हैं। ताकि उनसे और नयी शाखाà¤à¤‚ निकलें। इस गà¥à¤£à¤¨ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ को पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• तीसरे या चौथे सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ अपनाकर à¤à¤• वरà¥à¤· में हजारों-लाखों शाखायें तैयार की जा सकती हैं जिनको उचित माधà¥à¤¯à¤® में उगाया जा सकता है।
“ऊतक संवरà¥à¤§à¤¨” विधि की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस में बहà¥à¤¤ सारे पौधे थोड़ी-सी जगह में उगाये जा सकते हैं। ये पौधे रोगजनक कीटाणà¥, वायरस आदि से à¤à¥€ मà¥à¤•à¥à¤¤ रहते हैं। साधारणतः ऊतकों के समूह को चार से छह सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ के बाद दूसरे माधà¥à¤¯à¤® में पहà¥à¤à¤šà¤¾ दिया जाता है। इस माधà¥à¤¯à¤® का तापकà¥à¤°à¤® सामानà¥à¤¯à¤¤à¤ƒ 10 डिगà¥à¤°à¥€ से 9 डिगà¥à¤°à¥€ सेंटी गà¥à¤°à¥‡à¤¡ तक रखा जाता है। यह तापकà¥à¤°à¤® पौधे की पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ पर निरà¥à¤à¤° करता है। कम तापकà¥à¤°à¤® पर इन पौधों की उपापचय कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ काफी हद तक धीमी पड़ जाती है। सैदà¥à¤§à¤¾à¤‚तिक रूप से इस चयापचयी कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ को समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ रूप से रोका जा सकता है। इस तरह से इन पोधों को दीरà¥à¤˜ समय तक सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रखा जाता है।