बरसात के दिनों में शहर का मौसम à¤à¥€ अलग- अलग जगहों के लिठअलग- अलग चेहरे रखता है । कहीं धूप नज़र आती है तो कहीं छाà¤à¤µ । कहीं बादल गरज रहे होते हैं तो कहीं बरस रहे होते हैं । ऑफिस की छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ होते ही शिखा घर जाने के लिठनिकली । आसमान की ओर देखने पर वो समठना पाई कि बादलों की आगामी योजना कà¥à¤¯à¤¾ है । वह सड़क के किनारे - किनारे पगडंडियों पर चलने लगी , कà¥à¤› सोचते - कà¥à¤› गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥‡ । कामकाजी महिलायें मारà¥à¤¨à¤¿à¤‚ग वॉक कहाठकर पाती हैं । सà¥à¤¬à¤¹ का तो à¤à¤• - à¤à¤• मिनट कीमती होता है उनके लिठ। शिखा ने सोचा इसी बहाने कà¥à¤› कदमताल हो जाठ। अचानक धूप कमज़ोर पड़ गई और बादल घहराने लगे । कहीं रà¥à¤•à¤¨à¤¾ मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² था ।
बहà¥à¤¤ खीठहोती है शिखा को , जब ये आसमानी नीली बूंदें उसका रासà¥à¤¤à¤¾ रोक कर खड़ी हो जाती हैं । आस - पास में कोई इमारत न थी । कà¥à¤› दà¥à¤•à¤¾à¤¨ थे तो वहां पहले से पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की जमात पान चबाते खड़ी थी । उसने सोचा ' à¤à¥€à¤‚ग ही गई हूठतो चलती रहूठ। ''
.. अचानक पीछे से कार का हॉरà¥à¤¨ सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ दिया। कार शिखा के बगल में आते ही धीमी हो गई । शिखा ने सोचा -- '' शायद कोई परिचित है ,, उसे à¤à¥€à¤‚गते देख मदद देने के लिठआया है ।'' धीरे - धीरे कार की खिड़की का शीशा नीचे हà¥à¤† ।
à¤à¤• à¤à¥‚री आà¤à¤–ों वाला वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ नीली शरà¥à¤Ÿ में कार की डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤¿à¤‚ग सीट पर बैठा था । अपने दिमाग के मानचितà¥à¤° पर शिखा ने काफी नज़र दौड़ाया पर उसे वो चेहरा जाना - पहचाना ना लगा ।
बड़े ही शालीनता से उसने कहा '' कहाठजाना है आपको ? बैठजाइये मैं छोड़ देता हूठ। ''
बड़ा कà¥à¤°à¥‹à¤§ आया उसे उस à¤à¥‚री आà¤à¤–ों वाले पे । सोचने लगी आजकल ये मनचले बारिश के मौसम में à¤à¥€ शांत नहीं बैठते ।
शिखा ने तà¥à¤¯à¥Œà¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ चढाते हà¥à¤ कहा '' जी नहीं ,मैं खà¥à¤¦ चली जाऊà¤à¤—ी । ''
कार शिखा के साथ - साथ चलती रही ।
फिर उस वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ ने कहा '' देखिये , बात सिरà¥à¤« à¤à¥€à¤‚गने की नहीं है । इस मौसम में गाहे - बगाहे पेड़ गिरते रहते हैं और बिज़ली à¤à¥€ । à¤à¤¸à¥‡ में सड़क पर पैदल चलना सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ नहीं । मैं आपको ऑटो सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड तक पहà¥à¤‚चा देता हूठ, फिर आप चली जाना ।''
शिखा ने सोचा कि ये बनà¥à¤¦à¤¾ कह तो सही रहा है । अब उसे à¤à¥€ डर लगने लगा था । वह रà¥à¤• गई । कार की पिछली सीट का दरवाज़ा खà¥à¤²à¤¾ । शिखा चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª जाकर बैठगई ।
शिखा ने महसूस किया कि वही डर कार के अनà¥à¤¦à¤° à¤à¥€ साथ था जो कार के बाहर सड़कों पर बिछा था । इस कडवे सच से आज हर औरत बावसà¥à¤¤à¤¾ है कि वे कहीं सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ नहीं -- ना घर में ना सड़कों पर , ना बस में ना टà¥à¤°à¥‡à¤¨ में , यहाठतक कि माठके गरà¥à¤ में à¤à¥€ नहीं । पर अब तो शिखा ने उस अपरिचित का निवेदन सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर लिया था । मन में अजीबो -गरीब शंकाओं के बादल शोर मचा रहे थे -- '' अब ये इडियट जरà¥à¤° अपने कार की लà¥à¤•à¤¿à¤‚ग गà¥à¤²à¤¾à¤¸ ठीक करेगा मà¥à¤à¥‡ देखने के लिठ....और फिर मेरा फोन नंबर à¤à¥€ माà¤à¤—ेगा '' शिखा ने मन ही मन सोचा । कार में धीमा - धीमा संगीत बज रहा था -- '' चले जाना , ज़रा ठहरो , किसी का दम निकलता है ,, ये मंज़र देखकर जाना ,,चले जाना ................... ।''
खà¥à¤¦ पे आ रहे गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ और उस à¤à¥‚री आà¤à¤–ों वाले से लग रहे डर के मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ अनà¥à¤à¤µ से घिरी शिखा चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª बैठी थी कि अचानक कार रà¥à¤•à¥€ । बाहर मौसम अब शांत था । बारिश जैसे ही थमती है , ज़िनà¥à¤¦à¤—ी चल पड़ती है । बादल - बारिश की सौगात के मानिंद कीचड़ से सनी पड़ी सड़कों पर लोगों की आवाजाही शà¥à¤°à¥‚ हो गई थी ।
शिखा के कानों में आवाज़ आई --'' ऑटो सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड आ गया है , आप ऑटो से जाना चाहेंगी या मैं ही पहà¥à¤‚चा दूठ? ''
'' देखा , धीरे - धीरे ये मनचले लोग कैसे सर पे चà¥à¤¤à¥‡ हैं '' शिखा ने सोचते हà¥à¤ तà¥à¤°à¤‚त कार का दरवाज़ा खोला और बिना धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥ की औपचारिकता की परवाह किये कार से उतर गई ।
ऑटो में जाकर बैठी तो ऑटो वाले ने कहा -- मैडम तनिक देर रà¥à¤•à¤¿à¤ । à¤à¤• - दो पैसेंजर और आ जाà¤à¤ तो चलता हूठ। शिखा इंतज़ार करने लगी । धड़कने अब à¤à¥€ डरी हà¥à¤ˆ थीं । किसी अनजान मरà¥à¤¦ के साथ २० मिनट का वो सफ़र शिखा को खà¥à¤¦ की ही नज़रों में आतंकवादी घोषित कर रहा था ।
मानो उसने à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ महिलाओं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° की बनी बनाई परिपाटी पर हमला कर दिया हो । रासà¥à¤¤à¥‡ à¤à¤° उस à¤à¥‚री आà¤à¤–ों के बारे में अनापशनाप सोचते हà¥à¤ वो घर पहà¥à¤‚ची । घर की सीढियाठचà¥à¤¤à¥‡ हà¥à¤ उसके कानों में अपने पति कौशल की आवाज़ आई । उसे चिंता हà¥à¤ˆ ।
कौशल को तो अà¤à¥€ ऑफिस में होना चाहिठथा ।
'' आप घर में हो ?'' शिखा ने सवाल किया ।
'' अरे हाठ, बिटà¥à¤Ÿà¥‚ के सà¥à¤•à¥‚ल से फोन आया था। उसे बà¥à¤–ार चॠगया था तो मैं ऑफिस से निकल कर उसे लाने चला गया । '' कौशल ने जवाब दिया ।
'' कहाठहै बिटà¥à¤Ÿà¥‚ ?'' मैंने बड़ी ही वà¥à¤¯à¤—à¥à¤°à¤¤à¤¾ से पूछा ।
'' घबराओ नहीं , इतने खराब मौसम में उसे असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² नहीं ले जा पाया । घर में ही डॉकà¥à¤Ÿà¤° को बà¥à¤²à¤¾ लिया है । बिटà¥à¤Ÿà¥‚ अपने कमरे में है ।'' कौशल बड़े ही शांत à¤à¤¾à¤µ से मà¥à¤à¥‡ दिलासा देते हà¥à¤ बोले ।
शिखा दौड़कर बेटे के कमरे की तरफ गई ।
डॉकà¥à¤Ÿà¤° बिटà¥à¤Ÿà¥‚ को कह रहा था '' जीठबाहर निकालो। बेटे , जीठदिखाओ । '' शिखा आà¤à¤–ें फाड़ - फाड़ कर देख रही थी । अपने बेटे को नहीं उस डॉकà¥à¤Ÿà¤° को ,,। वही à¤à¥‚री आà¤à¤–ों वाला नीली शरà¥à¤Ÿ वाला ।
गनà¥à¤¦à¥€ सोच वाले लोग शरीफों को à¤à¥€ गà¥à¤‚डों की कतार में ला खड़े करते हैं और फिर ज़माने à¤à¤° में गाते फिरते हैं --- '' शराफत नहीं रही ,,शरीफों का ज़माना नहीं रहा । ''
कौशल शिखा के पीछे आ खड़े हà¥à¤ और कहा ,'' मोहतरमा , à¤à¤²à¤¾ हो डॉकà¥à¤Ÿà¤° साहब का जो इतने खराब मौसम में à¤à¥€ मेरे à¤à¤• फोन कॉल पर अपने बिटà¥à¤Ÿà¥‚ के इलाज़ के लिठआ गठ। इनके लिठकà¥à¤› चाय - नाशà¥à¤¤à¤¾ का इंतजाम कीजिये ।''
शिखा चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª रसोईघर की तरफ मà¥à¥œ गई ।
इस बार à¤à¥€ à¤à¤• सजायाफà¥à¤¤à¤¾ मà¥à¤œà¤°à¤¿à¤® की तरह जिसने बेवजह à¤à¤• शरीफ को अपने शक और उलजà¥à¤²à¥‚ल सवालों के कठघरे में ला खड़ा किया था ।