शाम की अपनी कहानी है....सारे दिन की वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤à¤¤à¤¾ और मन की बेवजह उड़ान à¤à¤• अनचाही-सी थकान पैदा कर देती है. हृदय की धड़कन, अà¤à¥€ सà¥à¤¸à¥à¤¤ है, पर रà¥à¤•à¥€ नहीं. लेकिन फिर à¤à¥€ मन निढाल-सा, मायूस हो ठहर जाता है कहीं ! ये कैसा इंतज़ार है, जो थमता ही नहीं ! हर उदास शाम, यूठही बैठजाना और सà¥à¤¬à¤¹ होते ही, अचानक पंख फड़फड़ा दà¥à¤—à¥à¤¨à¥€ तेज़ी से उड़ जाना ! न जाने, रोज ही ये हिमà¥à¤®à¤¤ कैसे टूटती है और रोज ही इतना हौसला कहाठसे पैदा होता है. खैर, जो à¤à¥€ है ; ज़रूरी है, इसका होना à¤à¥€ ! चलते रहना ही तो जीवन है और जब तक जीवन है, चलो....कà¥à¤› क़दम यूठà¤à¥€ सही ! जब बारिश की बूà¤à¤¦à¥‡à¤‚, पतà¥à¤¤à¥‹à¤‚ से सरकते हà¥à¤ हौले से माटी को सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ करती हैं, तो 'टिप-टिप'...जब आसमान के घने बादल दिन-रात अठखेलियाठकरते हà¥à¤ बरसते हैं, तो 'रिम-à¤à¤¿à¤®'...जब यही पारदरà¥à¤¶à¥€ मोती टीन या किसी à¤à¥€ ठोस सतह से टकराकर गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤¾ हà¥à¤† गीत सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ लगता है, तो 'छन-छन' और जब ये à¤à¤• शरारती बचà¥à¤šà¥‡-सा बन पतà¥à¤¤à¥‡ से हटने का नाम ही न ले, तो हम जैसे लोग उसके इस बिछौने को à¤à¤• पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€-सी थपकी दे, उछाल दिया करते हैं और तà¤à¥€ ये घबराकर 'धमà¥à¤®' से गिर पड़ता है ! * अपनी ही पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ का à¤à¤• अंश साà¤à¤¾ किया है !