चिकित्सा प्रमाण पत्र :- व्यवसाय का एक नया आयाम

बात दिल्ली विश्व विद्यालय की हो या अन्य किसी भी शैक्षिक संस्थान की विद्यार्थियों को विद्यालय की तरफ से उपस्थिति की जो नियुन्तम सीमा निर्धारित की गयी है उसको पूरा करने के लिए आज के वर्तमान समय में विद्यार्थियों को चिकित्सा प्रमाण पत्र किसी भी बीमारी या अस्वस्थ रहने की अवस्था में विद्यालय द्वारा स्वीकार किया जाता है । छात्रों को उन तिथियों के लिए उपस्थिति की गणना की गणना करते समय छूट प्राप्त होती है ।

इस छूट का उद्देश्य यह है की जो छात्र बीमार पड़ जाने के कारण विद्यालय आने में असमर्थ थे उन्हें परीक्षा देने में कोई दिक़्क़त न आए और उनका नियुन्तम उपस्थिति सीमा बना रहे । उपस्थिति की नियुन्तम सीमा से अधिक होने पर अधिकतम पाँच अंक देने का प्रावधान भी है , इसी कारण आज अधिकतर छात्र द्वारा इस प्रावधान का गलत प्रयोग किया जा रहा है और बड़ी ही आसानी से बहाने बना कर क्लास से अनुपस्थित हो जाते है । इसी कारण आज क्लास में विद्यार्थियों की की संख्या दिन ब दिन घटती जा रही है ।

बात यहीं खत्म नही हो जाती है । छात्र जो चिकित्सा प्रमाण पत्र चिकित्सक से फर्जी रूप से बनवाते हैं उन चिकित्सकों का भी एक नया व्यवसाय चल पड़ा है । चिकित्सक भी छात्रों से 150 से लेकर 200 रुपए तक प्रति प्रमाण पत्र चार्ज करके चाँदी काट रहे हैं । अब भला किसको बुरा लग सकता है , ग्राहक हैं विद्यार्थी जो छुट्टी का आनंद उठा रहें हैं और मौज मस्ती कर रहें हैं और दूसरे हैं चिकित्सक जो धन अर्जन कर रहे हैं ।

बात भले ही सामाजिक अवचेतना की हो या प्रशासनिक आलोचना की मुद्दे तो उठेंगे ही अन्यथा ये विद्यार्थी विद्यालय अनुशासन को बिगाड़ते रहेंगे । जरूरत है सशक्त प्रावधान लाने की और विद्यालय के अनुशासन की सुसंचालित करने की अन्यथा समाज में एक नया व्यवसाय पनप जायेगा और चिकित्सक इलाज करने के साथ-साथ चिकित्सा प्रमाण पत्र बेचने की होर्डिंग भी लगा कर बैठेंगे ।


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