योगासन

योग शब्द 'यूज' धातु से बना, जिसका अर्थ होता है जोड़ना। जीवात्मा का परमात्मा से मिल जाना, एक हो जाना, एक हो जाना ही योग है।
      योगाचार्य महर्षि पतंजली ने सम्पूर्ण योग के रहस्य को अपने योगदर्शन में सूत्रों के रूप में उपदेश दिया है:-

चित्त को एक जगह स्थापित करना‘योग’ है।

योगासन हेतु सावधानियाँ:-

1:- योगासन करने से पूर्व शौच,स्नान आदि से निवृत्त हो जाएँ।
2:- प्रातःकाल योगासन करना अधिक लाभकारी है।
3:- योगासन करने के तुरन्त बाद स्नान नहीं करना चाहिए। पसीना को पंखे से न सुखाएँ, शरीर का ताप सामान्य होने पर स्नान करें।
4:- योगासन के आधा घंटा पश्चात् दूध, दलिया, फल या अँकुरित अनाज थोड़ी मात्रा में अवश्य लेना चाहिए। 
5:- आसन एकान्त तथा धूल, मिट्टी व धुँआ रहित स्थान पर किया जाना चाहिए। घर की छत, पार्क, नदी के किनारे अथवा ऐसे खुले स्थान पर करना चाहिए जहाँ शुद्ध हवा आती जाती हो। अधिक ठंड में योगासन खुले कमरे में करें।
6:- आसन करते समय शरीर पर वस्त्र कम से कम और ढ़ीले होने चाहिए।
7:- समतल भूमि पर गरम कम्बल मोटी दरी बिछाकर ही आसन करें। खुली भूमि पर बिना कुछ बिछाकर आसन कभी न करें, जिससे शरीर में निर्मित होने वाला विद्युत् प्रवाह नष्ट न हो जाए।
8:- श्वास मुँह से न लेकर नाक से ही लेना चाहिए।
9:- आसन करते समय शरीर के साथ जबरदस्ती न करें, अतः धैर्य पूर्वक आसन करें।
10:- आसन के पूर्व थोड़ा ताजा जल पीना लाभदायक है। ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में विभाजित होकर संधि स्थानों का मल निकालने में जल बहुत सहायक होता है।
11:- आसन की स्थिति में श्वासप्रश्वास का विशेष ध्यान रखें।
12:- आसन करते समय शरीर में जिस स्थान पर खिंचाव पड़ रहा हो, कष्ट होने लगे या पीड़ा का अनुभव हो तो उस अभ्यास को तुरन्त बंद कर देना चाहिए।
13:- आसन में प्रतिस्पर्धा नहीं करना चाहिए। 
14:- आसन जितने समय तक सरलता से कर सकें उतने समय तक ही करें।
15:- आसन नियमित तथा एकाग्रचिन्त होकर प्रसन्न मुद्रा में करना चाहिए।
16:- रुग्णावस्था में कुशल योग शिक्षक की देख-रेख में विशेष आसन करना चाहिए।
17:- भोजन के चार घंटे बाद ही आसन किया जा सकता है।

अष्टांग योग

      योग के द्वारा विभिन्न दशाओं को पार करता हुआ व्यक्ति मन और आत्मशक्ति का विकास करता हुआ आत्मज्ञान को प्राप्त होता है।
      हमारे ऋषि-मुनियों ने योग के द्वारा शरीर मन और प्राण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति के लिए आठ प्रकार के साधन बतलाए हैं, जिसे अष्टांग योग कहते है। ये हैं―

यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रात्याहार, धारण, ध्यान और समाधि।

(1) यम:-यम का अर्थ है व्रत―पंचव्रत:- जिस अहिंसा, सत्य अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह कहते हैं। 
(2) नियम:-इसका संबध आपके अपने चरित्र से है। व्यक्तिगत चरित्र स्वच्छ और उत्तम होना चाहिए।
(3) आसन:- शरीर के विभिन्न अंगों के विकास के लिये जो यौगिक क्रियाएँ की जाती हैं, उन्हें आसन कहा जाता है।
(4) प्राणायाम:-आसन की स्थिरता होने पर श्वास-प्रश्वास की स्वाभाविक गति का नियमन करना-रोककर सम कर देना 'प्राणायाम' है।
(5) प्रत्याहार:- अपने-अपने विषयों के संग से रहित होने पर इन्द्रियों का चित्त के रूप में अवस्थित हो जाना प्रत्याहार है।
(6) धारणा:- चित्त को किसी एक विशेष में स्थिर करने का नाम धारणा है।
(7) ध्यान:-प्रभु का चिंतन करना और उसके स्मरण में चित्त को लगाना ध्यान कहलाता है।
(8) समाधि:-समाधि लग जाने पर मनुष्य के अन्तःचित्त में स्वतः ही प्रकाश दिखने लगता है।

लाभ:-इन आठों प्रक्रियाओं से मानसिक आध्यात्मिक और शारीरिक विकास होता है और शरीर स्वस्थ होगा। इससे विकार दूर होंगे, मन स्वच्छ होगा और आप एक आदर्श व्यक्ति कहलायेंगे। 


लेखक परिचय :
मनोज कुमार सैनी
फो.नं. -9785984283
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