तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ और मेरे बीच
à¤à¤• सेतॠहà¥à¤† करता था
जिस पर चल रोजाना ही
विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ की गहरी नींव
और सà¥à¤¨à¥‡à¤¹-जल की फà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ में
गोता खाते हà¥à¤ हमारे शबà¥à¤¦
मचलकर à¤à¤•-दूसरे तक
पहà¥à¤à¤š कैसे इठलाया करते थे.
बहà¥à¤¤ गà¥à¤®à¤¾à¤¨ था, हमें
कà¤à¥€ à¤à¥€ इसके न टूटने का
यूठतो था ये केवल अपना ही
पर अपनेपन में, हमने गà¥à¤œà¤°à¤¨à¥‡ दिया
कà¥à¤› अंजान लोगों को à¤à¥€ इससे होकर
वह दौर ही कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ था
जहाठआà¤à¤¾à¤¸ तक न था
किसी की मंशा और इस संशय का.
धीरे-धीरे न जाने कितने मà¥à¤¸à¤¾à¤«à¤¼à¤¿à¤°
चलने लगे, आम रासà¥à¤¤à¤¾ समà¤
हाà¤, बहà¥à¤¤ ख़ास था ये
बस मेरा-तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾
पर होता गया मलीन
लोगों की बेरोक-टोक आवाजाही से
à¤à¤°à¤¤à¥‡ रहे सब अपने विचारों की गंदगी
बढ़ता ही गया, अनपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ à¤à¤¾à¤°.
देखो न ! आज जब, वही लोग
इस पर हंसते-गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥‡
नज़र आते हैं, तब
हमारे लिठकमजोर हो
डगमगाने लगा है, ये शबà¥à¤¦-सेतà¥
और अब, मैं और तà¥à¤®,
बैठे हैं, इसके दोनों सिरों पर
अलग-अलग, बेहद उदास और गà¥à¤®à¤¸à¥‚म
à¤à¤¯à¤à¥€à¤¤ हैं, उस मंज़र की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ से ही
जब हमारी आà¤à¤–ों के सामने
हमारा अपना 'सà¥à¤¨à¥‡à¤¹-पà¥à¤²'
मातà¥à¤° शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ के अà¤à¤¾à¤µ में, सिसकता हà¥à¤†
चरमरा कर दम तोड़ देगा !