सकारात्मक सोच

सुविचार:- “रहे भावना ऐसी मेरी सरल सत्य व्यवहार करूँ, जहाँ तक हो इस जीवन में औरों का उपकार करूँ।”

सर्वप्रथम,  'ज्ञानमंजरी' वेब पत्रिका की ओर से आप सभी पाठकगण को नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ। नया वर्ष, नवीन सोच व जिज्ञासा से पूर्ण जीवन विकास की ओर एक और कदम। ऐसे में चलिए कुछ आत्मविश्लेष्ण की बातें कर लें। कहने को तो वर्ष, दिवसों की गणना मात्र है, फिर भी हमारे विकासक्रम का सारा लेखाजोखा इन्हीं दिवसों में उलझा रहता है। हम झट से अपने अच्छे और बुरे अनुभव को दिवस से जोड़ लेते हैं, किन्तु यह तो हमारे कर्म, हमारी सोच पर निर्भर करता है कि हमारा जीवन कैसा व्यतीत होगा।

आप अकसर कई प्रतिभाशाली लोग को जीवन में असफल होते देखें होंगे। क्यों होता है ऐसा? मैं ऐसे कई लोगों से मिली हूँ जो प्रतिभाशाली हैं, बुद्धिमान हैं, किन्तु असफल हैं। वे एक सामान्य सी नौकरी में संतुष्ट हैं (क्योंकि वे बड़ी जिम्मेदारियों से घबराते हैं)। उनके बहुत कम दोस्त हैं (क्योंकि लोगों से बातें करना पसंद नहीं)। अपने लिये निर्णय पर शंका होती है (सही-गलत का फैसला करना मुश्किल होता है)। ऐसे लोग अक्सर अपनी बुद्धि के तर्क से यह सिद्ध कर लेते हैं कि चीजें असफल होंगी ही। बुद्धि की कमी न होने के बावजूद सोचने का गलत नजरिया असफलता का कारण होता है। सफलता दिलाने वाले ऐसे दिमाग का क्या काम जो भाग्य और अपने सोच का गुलाम हो। बुद्धि की मात्रा से ज्यादा महत्वपूर्ण है उस चिन्तन, उस नजरिये का होना जो आपकी बुद्धि को सही दिशा दिखा सके।

आपको यह जानकार ताज्जुब होगा कि कितने ऐसे नौजवान हैं जो कॉलेज सिर्फ इस लिए छोड़ देते हैं, क्योंकि उन्हें प्रोफ़ेसर पसंद नहीं आते, या अपने विषय में मजा नहीं आता या उन्हें पसंदीदा साथी नहीं मिलता। आपका नजरिया, आपकी सफलता तय करती है। मात्र ज्ञानार्जन शक्ति का सूचक नहीं हो सकता। ज्ञान, 'शक्ति' तभी बनता है जब इसका उपयोग किया जाता है और तभी, जब यह उपयोग सकारात्मक या रचनात्मक हो। अपने दिमाग को नकारात्मक सोच का गोदाम न बनने दें, और न ही भाग्य का रोना ले कर बैठे रहें। आपका एक सकारात्मक सोच आपकी नियति पर भारी पड़ सकता है। जीवन के किसी भी अप्रिय घटना को बार-बार अपनी सोच में शामिल करने से भी हमारे आत्मविश्वास में कमी आती है, जो हमारी सफलता की राह में मनोवैज्ञानिक कठिनाइयाँ खड़ी करती है। चलो! इस बार अपनी थोड़ी सोच बदलें। सकारात्मक सोच में गजब की जादुई ताकत होती है। अपने आप से बात करने के लिए समय निकालें और अपने चिंतन की प्रबल शक्ति का दोहन करें, मगर हाँ,इस होड़ में 'मानव बने रहें' नियम का ह्रास न हो और न ही नियति पर कोई दोषारोपण ही हो.... इसी शुभेच्छा के साथ एक बार फिर से आप सभी को नववर्ष की हार्दिक बधाई.....


लेखक परिचय :
मनोज कुमार सैनी
फो.नं. -9785984283
ई-मेल -
इस अंक में ...