कैमरे की नज़र से-फरवरी 2015

कहते है, फ़रवरी 'प्रेम' का महीना है। कुछ के लिए ये बेहद ख़ास और कुछ के लिए उतना ही उदास ! जिसने पाया, वो गुनगुनाया और जिसने खोया, वो रोया ! दोष, क़िस्मत का या मन का ? सच, जीवन कितना सरल होता, अगर ये इच्छाओं और अपेक्षाओं की चपेट में न आया होता ! पर, वो 'जीवन' ही क्या..जो सरल रहा ! रोज़मर्रा की जद्दोज़हद के बिना ज़िंदगी कटती नहीं, पर ऐसे में भी, बन्ज़ारे मन-से भटकते जीवन के विविध रूप कैसे हैरां कर जाते हैं। चहचहाते पक्षी, महकते फूल, बारिश के गिरते मोती खूब सुहाते हैं, खिलता हुआ सूरज सिर्फ़ रोशनी ही नहीं, उम्मीद की एक नई सुबह भी दे जाता है।
रंगबिरंगी तितलियाँ, हर उम्र का मन लुभाती हैं कभी फिरती इधर-उधर, कभी फूलों संग इठलाती हैं। इन्हें उन्मुक्त उड़ते देख सहसा विश्वास ही नहीं होता कि ये बस चन्द दिनों की ही मेहमान है. फिर भी कैसी प्रसन्नचित्त, खिलखिलाती नज़र आती हैं।  कितना आसान हो जाए, गर हम भी इनसे जीना सीख लें।  प्रकृति में 'प्रेम' महसूस करने के लिए सब कुछ है, फिर मानव से 'अपेक्षा' क्यूँ रखना ? 'प्रेम' की परिभाषा, इतनी संकुचित कर देना सही नहीं लगता !
'प्रेम' को मापा नहीं जा सकता और न ही परिभाषित किया जा सकता है यह तो सृष्टि के कण-कण में समाहित है !
मुझे प्रेम है...
बारिश की बूँदों से,
मिट्टी की खुश्बू से,
नदिया की कलकल से,
लहरों की हलचल से,
जंगल के हिरणों से
सूरज की किरणों से,
चंदा, सितारों से
सागर, किनारों से
बहते इन झरनों से
पलते इन सपनों से
फूलों से कलियों से
गाँवों की गलियों से
होली के रंगों से
घर के हुड़दंगों से
दीपक की बाती से
बगिया की माटी से
सावन के झूलों से
कच्चे इन चूल्हों से
पंछी से, पेड़ों से
खेतों की मेडों से
झिलमिल चौबारों से
रंगीं गुब्बारों से
बच्चों की टोली से
मीठी उस बोली से
दुनिया से, मेले से
यादों के ठेले से.....
.........और ऐसे ही न जाने कितने अद्भुत, अचंभित कर देने वाले अविस्मरणीय पल काफ़ी हैं न, ज़िंदगी को जीने के लिए ? शुभकामनाएँ, 'प्रेम दिवस' की ! :)


लेखक परिचय :
प्रीति "अज्ञात"
फो.नं. ---
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