एक बचपन अभी भी है वहां !

ये तस्वीर, मेरी पसंदीदा तस्वीरों में से एक है। 5-6 वर्ष पूर्व की बात है, मैं सपरिवार राजस्थान यात्रा पर निकली थी, तभी जोधपुर जाने का भी संयोग बना ! वहाँ किले के बाहर बैठे, एक हँसते-गाते परिवार को देखकर क़दम वहीँ ठहर गए ! आदतानुसार, उनसे थोड़ी बातें कीं तो पता चला कि मुखिया का नाम जीवनराम है और वो प्रतिदिन यहीं बैठकर 'रावणहत्था' नामक वाद्य-यंत्र बजाते हैं ! पर्यटकों का मनोरंजन हो जाता है और उनका जीविकोपार्जन भी ! उनके पुरखे भी यही करते आये थे !
एक झीनी-सी, लाल-नारंगी चादर और उस पर पारम्परिक वेशभूषा में विराजमान उनका छोटा-सा परिवार ! बच्चे की आँखों में अनगिनत, प्यार भरी शैतानियाँ कुलबुला रहीं थी और प्यास न होते हुए भी वो पानी सिर्फ मुझे 'tease' करने के लिए, पिए जा रहा था ! बच्चों के साथ मेरी खूब बनती है, सो मुझे भी उसे छेड़ने में बहुत मज़ा आ रहा था ! जैसे ही मैंनें तस्वीर खींचने का मन बनाया, उसकी माँ ने शरमाकर घूँघट और नीचे कर लिया ! मैं ऐसा चाहती तो नहीं थी, पर उनकी भावनाओं का आदर करते हुए झटपट घूंघट वाली ये तस्वीर ले डाली। थोड़ी देर बैठी और फिर उनसे विदा ली ! पर वहाँ से लौटने के बाद भी उस औरत का चेहरा, उस बच्चे की शैतानी भरी आँखें और जीवनराम जी के 'रावणहत्थे' का मधुर संगीत साथ ही गूँजता रहा ! 
समय बीता और अब मैं, 'साहित्य-रागिनी वेब पत्रिका' की संपादक थी और मई '2014 अंक के लिए इसी शहर से एक चित्र की तलाश में थी ! अचानक यही परिवार, आँखों के सामने तैरने लगा ! फटाफट पुरानी अलबम खंगाली और इस चित्र को ढूंढ ही निकाला ! पत्रिका का आकर्षक मुखपृष्ठ बनाया ! लेकिन मन फिर भी, कहीं कचोटता रहा कि जिसकी तस्वीर है, उससे तो मैनें अनुमति ली ही नहीं ! यह बात मैनें पत्रिका के प्रधान संपादक, करीम पठान अनमोल से साझा की ! बात आई-गई हो गई !
एक दिन अचानक करीम भाई का फ़ोन आया, जिसे सुनकर सहसा विश्वास ही नहीं हुआ ! नहीं, ये असंभव है ! ये सच हो ही नहीं सकता ! कहाँ तो मैं इस परिवार से फिर मिलने का सोच रही थी, और कहाँ अब उसका एकमात्र सहारा ही उन्हें छोड़कर जा चुका था ! सड़क-दुर्घटना में जीवनराम जी को मृत्यु के क्रूर हाथों ने लील लिया था ! तस्वीर बदल चुकी थी ! अब अपने परिवार के साथ, उनकी पत्नी और बच्चे का भरण-पोषण उनके भाई पप्पूराम जी कर रहे हैं ! दुर्भाग्य और हैरत की बात है, कि ये हादसा भी पत्रिका के उस अंक के निकलने के आसपास ही हुआ ! शायद ये कोई संकेत था , कि मुझे वहाँ जाना चाहिये ! 
शहर वही, किला वही, जगह वही, वाद्य-यंत्र वही ...... एक बचपन अभी भी है वहां ! पर अब मुस्कान नहीं दिखती, एक रंगीन खुशमिज़ाज़ तस्वीर, बदलते समय के साथ 'रंगहीन' हो चुकी है ! क़ुदरत ने , इन चेहरों के सारे रंग निचोड़ लिए हैं ! सुना है, ये शहर 'होली' खूब खेलता है, यहाँ का रंग आसानी से उतरता नही....!
क्या मैं इस शहर से उम्मीद करूँ , कि ये बदली तस्वीर फिर रंगीन हो जायेगी ? ज़िन्दगी फिर यहाँ मुस्कुराएगी? जवाब आपके पास है, पता और नंबर नीचे लिखा है -

पप्पूराम s/o कालूराम भील (नायक)
भोमियाँ जी के मंदिर के पास, खोखरिया
जोधपुर- 342027, राजस्थान 
मो.- 09509165921


लेखक परिचय :
प्रीति "अज्ञात"
फो.नं. ---
ई-मेल - [email protected]
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