अब तो सम्‍हल जा समय के मुशाफिर

हैं बेजुबां बहुत से मुशाफिर, जहां पैर रखकर तू जाता है काफिर,
कदम को जमीं पर सम्‍हल के है रखना,
जहां पैर रखकर तू जाता है काफिर, 
चींटी नहीं है बताने की आदी, ना ही है हल्‍ला मचाने की आदी,
मगर बेजुवां के इसारों को समझो,
कदम पर जमीं के सितारों को समझो,
हे वेजुवां बहुत से मुशाफिर,
कदम को जमीं पर सम्‍हल के है रखना, जहां पैर रखकर तू जाता है काफिर, 
नहीं रास्‍ते पर तुम्‍हारे वो आती,
सुन्‍दर लकीरों सी राहें बनाती, कभी भूल ऐसी नहीं है वो खाती, 
मुशाफिर है छोटी, मगर वो बड़ी,
मुश्‍किल भरी राह पर वो खड़ी, 
मासूम है वो मगर फुलझड़ी है, हाथी, की राहों में मुश्‍किल बड़ी है, 
मगर वेजुवां वो सताती नहीं है, घड़ी दो घड़ी भी बताती नहीं है,
हें वेजुवां बहुत से मुशाफिर, जहां पैर रखकर तू जाता है काफिर,
कदम को जमीं पर सम्‍हल के है रखना,
जहां पैर रखकर तू जाता है काफिर, 
सद्भावना के वो किस्‍से दिखाती, सहयोग की है वो ज्‍वाला जलाती,
सहयोग से ही वो अपने बजन से है दुगना उठाती,
हे वेजुवां वो मगर हमसे बड़ी है,
इरादों की महफिल में भी अकेली खड़ी है, 
किस्‍से कहानी सभी सुनाती, 
मगर रास्‍ते पर कभी भी न आती,
सीखों जरा तुम उसकी कहानी, 
ताजा है ये तो नहीं है पुरानी,
अब तो सम्‍हल जा समय के मुशाफिर, जहां पैर रखकर तू जाता है काफिर,
कदम को जमीं पर सम्‍हल के है रखना,
जहां पैर रखकर तू जाता है काफिर, 


लेखक परिचय :
अनिल कुमार पारा
फो.नं. -9893986339
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