समायोजन की महत्ता

समायोजन की परिभाषा:
मानव एक सामाजिक प्राणी है| समाज में रहता है, सामाजिक परम्पराओं का पालन करता है, एक दूसरे का सहयोग करता है| शायद सामाजिकता का यहीं गुण है जिसने मानव को तेजी से तरक्की करने में बड़ी मदद की| और मेरी नजर में सामाजिकता जो सीखता है उसका एक महत्त्वपूर्ण भाग है समायोजन करना| अपने आप को परिवेश में ढालकर कर जीना| मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समायोजन करता है और जब समायोजन का संतुलन बिगड़ने लगता है तो टकराव की स्थिति पैदा होती है चाहे वह टकराव विचारों का, जाति का हो, भौगिलिक परिस्थितियों का हो|
समयोजन क्या है:
समायोजन से अभिप्राय है परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको बदलना, जिससे उस परिवेश में बिना टकराव के जीवन यापन किया जा सके| ऐसे शब्द को विज्ञान के एक शब्द अनुकूलन के काफी करीब या लगभग पर्यायवाची माना जा सकता है अनुकूलन की क्षमता ही जीवों को विशेष परिस्थितीयों में जीवित रखती है| परिवेश के मुताबिक कुछ ऐसे गुण/विशेषताएं विकसित हो जाती है जिनके द्वारा वह उस परिवेश में आसानी से रह सके| जैसे ऊंट के गद्दीदार पैरों का होना उसे रेगिस्तान में चलने में बड़ी सहायता प्रदान करता है|
दरअसल समायोजन एक बेहद व्यापक शब्द है. जिसमे केवल भौतिक विशेषताओं की बात नहीं की जाती, बल्कि यह तो एक आंतरिक विषशेता है जो व्यक्ति के रहने – सकने, चाल – चलन, दूसरों से अंतक्रिया आदि को बेहद सूक्ष्मता से प्रभावित करती है | एक छात्र के रूप हमें विद्यालय में भी समायोजन करना होता है | घर के बजाय विद्यालय के माहौल में कुछ अंतर होते है हमें विद्यालय में अधिक अनुशासित रहना होता है इससे छात्र – छात्राओं का भी ध्यान रखना होता है अपनी बारी का इंतजार करना होता है, यहाँ तक विभिन्न विषय के अध्यापकों के साथ भी अलग-अलग तरह से व्यवहार करना होता है जैसे मेरे एक विषय की शिक्षिका आकर्षक रंग से किये गये गृहकार्य व चित्रों को पसंद करती है तो दूसरे विषय की शिक्षिका को रंग बिरंगे चित्रों के बजाय एक रंग के पेन से किया गया साफ¬¬ सुथरा कार्य पसंद आता है| इसी तरह से केवल विद्यालय में ही नहीं परिवार में, आस पडौस में, बाजार में, अस्पताल में हमें परिस्थितियों के मुताबिक समायोजित होना होता है|
समायोजन की  महत्ता:
समायोजन क्षमता टकराव से बचाती है-
यह समायोजन है कि कुछ व्यक्ति जरा सी बात पर लड़ने – झगड़ने लगते है जबकि कुछ व्यक्ति काफी बड़ी समस्या का भी बैठकर समाधान कर लेते है| यह बात सिर्फ व्यक्ति तक ही सीमित  नहीं है अपितु राष्ट्रों पर भी लागू होती है| हो सकता है यह मेरे व्यक्तिगत विचार हो और आप सहमत नहीं हो पर मेरी नजर में भारत अधिक समायोजन व्यक्ति करने वाला देश है बजाए पाकिस्तान के| इसी तरह से ईरान, ईजराइल आदि देश की समायोजन  के बनाए टकराव की नीति पर कहीं अधिक चलते है| भारत के पंचशील के सिद्धांत, गुटनिरपेक्ष नीति आदि समायोजन की परिचायक है| भारतीय इतिहास भी समायोजन की भारतीय सांस्कृतिक परम्परा को उजागर करता है| यहीं कारण है इस देश में जी भी आया खूब फला-फूला क्योंकि यहाँ के निवासियों ने उन सब के साथ समायोजन स्थापित कर लिया|
समायोजन तरक्की की ओर ले जाता है-
यदि व्यक्ति की उर्जा का उपयोग सही कार्यों के लिए लेता है तो निश्चित रूप से वह ऊर्जा विकासगामी होती है| यह ऊर्जा नवसृजन को बढ़ावा देती है और तरक्की के रास्ते खोलती है| इसके विपरीत समायोजन की कमी अर्थात टकराव के हालात नकारात्मक परिस्थितियों को जन्म देते है, व ऊर्जा का ह्रास इन हालातों से निपटने में होता है, बजाय नवसृजन के|
समायोजन कहाँ व कैसे?
मनुष्य को अपने जीवन में विभन्न प्रकार के समायोजन करने होते है| जहाँ विभिन्न भौगोलिक स्थितियों के लोग रहते है तो वहां भौगोलिक विविधताएँ मनुष्यों की आदतों, रहन-सहन, खान-पान आदि में अंतर उत्पन्न करती है| ऐसे हालात में उस स्थान पर रहने वाले लोगों को परस्पर समायोजन करना होता है| महानगरों में इस तरह की स्थितियां आमतौर पर देखने को मिलती है| समायोजन के अभाव में टकराव उत्पन्न होता है और कई बार यह राजनैतिक रूप ले लेता है जैसे महाराष्ट्र में बाहर से आकर कार्यरत लोगों के साथ टकराव का होना| ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों के साथ बदसलूकी आदि|
जब दो या दो से अधिक धर्मों के लोग एक साथ रहते है  तो धार्मिक परम्पराओं में विविधता, अपने धर्म को अन्य धर्मों से श्रेष्ठ समझने की भावना आदि टकराव की वजह बनती है| ऐसे हालात में समायोजन की अधिक आश्यकता होती है| भारत में धर्मिक समायोजन की स्थिति बहुत अच्छी देखने को मिलती है यद्यपि विदेशों द्वारा देश की एकता को खतरा पहचाने के प्रयास व आतंकवादियोंव धर्मांध लोगों द्वारा उग्र विचारों का प्रसार इस समायोजन को क्षति पहुंचता है| प्रबुद्ध वर्ग इन हालतों से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है व सरकारी स्तर पर टकराव के हालातों को रोकने हेतु प्रयास किए जाते है परन्तु मेरे विचारों में युवा वर्ग व छात्र – छात्राओं में एक दूसरे के धर्मों का सम्मान करने की भावना की आवश्यकता है ऐसे समय में जब की तकनीक ने पूरी दुनिया का एक कुटुंब की तरह बना दिया है इस तरह के टकराव मानव सभ्यता व विकास के लिए अच्छे नहीं है|
भारतीय संस्कृति की मूल “वसुधैव कुटुम्बकम्” समायोजन को भी अपने में समाए हुए| एस भावना के प्रचार प्रसार की महती आवश्कता है| धार्मिक संकीर्णता, नस्लीय भेदभाव व लिंगभेद जैसी भावनाओं से ऊपर उठकर मानवमात्र की सेवा में संलग्न होने के लिए समायोजित तो होना ही होगा|

यह आलेख सामिया खांन द्वारा एक निबंध प्रतियोगिता लिए लिखा गया है व पुरस्कृत भी हुआ है | बालिका की मौलिकता व विस्तृत सोच ने मुझे इस लेख को ज्ञान मंजरी में प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया है |


लेखक परिचय :
मोहम्मद इमरान खान
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