दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚, राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¿à¤¤à¤¾ महातà¥à¤®à¤¾ गांधी ने कहा था कि ‘à¤à¤¾à¤°à¤¤ गांवों में बसता है’ लेकिन यह कथन कहने तक सीमित रह गया है। जिसकी तसà¥à¤µà¥€à¤° दूर की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ से नजर नहीं आ सकती है। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ à¤à¤¾à¤°à¤¤ से लेकर आधà¥à¤¨à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤°à¤¤ के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ तक à¤à¤¾à¤°à¤¤ के गांवों की तसà¥à¤µà¥€à¤° गांव की गलियों में ही मिल सकती है। आज à¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤ के जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° गाà¤à¤µà¥‹à¤‚ में तीन-चार पीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से रिशà¥à¤¤à¥‡ के अमूलà¥à¤¯ बंधन à¤à¤• दूसरे से बंधे हैं। पीड़ी-दर पीड़ी à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं की अटूट मिशाल à¤à¤• दूसरे से लिपटी देखी जा सकती है। यही पीड़ी आज विकास की अपार संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं के बीच à¤à¤¾à¤°à¤¤ के गांवों से शहर की ओर पलायन कर रही है। à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• सà¥à¤– सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं की चाह में गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ आवादी शहरों की घनी आवादी की रौनक बनती जा रही है। वैसे तो à¤à¤¾à¤°à¤¤ की संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ परिवार रूपी गठरी से बंधी रहने के नाम से जानी जाती है पर आधà¥à¤¨à¤¿à¤• यà¥à¤— में छोटी-छोटी बातों को लेकर विखणà¥à¤¡à¤¿à¤¼à¤¤ होते परिवार à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ परिवारों की अंदरूनी समसà¥à¤¯à¤¾ बन गई है। गांवों की फà¥à¤°à¤¸à¤¤ की आजादी से शहर की ओर à¤à¤¾à¤—ते परिवार आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ की चकाचौंध में à¤à¤¾à¤—मà¤à¤¾à¤— की चिकनी सड़कों पर रोज फिसलते दिखाई दे रहें हैं। जो à¤à¤¾à¤°à¤¤ के हर घर की कहानी बनते जा रहें हैं। à¤à¤• तरफ रोज टूटते परिवार चिनà¥à¤¤à¤¾ का विषय तो है हीं पर समाधान के विषय कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं होते हैं? à¤à¤²à¥‡ ही à¤à¤¾à¤°à¤¤ में कई सà¥à¤µà¤¯à¤‚सेवी संसà¥à¤¥à¤¾à¤à¤‚ परिवार परामरà¥à¤¶ केनà¥à¤¦à¥à¤° चला रहीं हो पर विखणà¥à¤¡à¤¿à¤¼à¤¤ होते परिवार के लोगों पर वस किसी का नहीं चलता है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ के सात लाख गांवों से ही मिलकर à¤à¤¾à¤°à¤¤ की शहरी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हà¥à¤† है। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के ठेकेदार तो लगे हाथ यह à¤à¥€ कह देते हैं कि गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ आवादी को मà¥à¤¹à¥ˆà¤¯à¤¾ होती शहरी सà¥à¤– सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं और आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ ने ही à¤à¤¾à¤°à¤¤ के घरों में बसने वाली सà¥à¤¨à¥‡à¤¹, पà¥à¤¯à¤¾à¤° और अपनेपन की संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के ऊपर कà¥à¤ ाराघात किया है। जिसका परिणाम आज विखणà¥à¤¡à¤¿à¤¼à¤¤ होते परिवारों के रूप में देखने को मिल रहा है।
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ में कà¥à¤Ÿà¥à¤‚ब परिवार का मूलà¥à¤¯ सबसे बड़ा माना गया है। कà¥à¤Ÿà¥à¤‚ब ही इस पृथà¥à¤µà¥€ की सांसरिक गतिविधियों का संचालन आधà¥à¤¨à¤¿à¤• काल से करता चला आ रहा है। कà¥à¤Ÿà¥à¤‚ब की à¤à¤•à¤¤à¤¾, परिवार की à¤à¤•à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ समरूपता इस पृथà¥à¤µà¥€ का संचालन कर रही है।अहम बात तो यह है कि रोजमरà¥à¤°à¤¾ में घटने वाली घटनाओं के पीछे परिवार की वह गठरी बंधी है जहां अकेलेपन की दीवार छोटी दिखाई देती है। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ में गांवों की à¤à¤²à¤• देखी जाय तो निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ रूप कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬ परिवार की वह कड़ी आपस में à¤à¤• दूसरे से जà¥à¤¡à¤¼à¥€ नजर आà¤à¤—ी मानो फूलों की माला आज à¤à¥€ मà¥à¤°à¤à¤¾à¤ˆ नहीं हो। पर शहरी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ की दौड़ में अकेले रहना जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पसंद करती है। इसी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के बीच टूट जाती है है वह आशा जो बंधे हà¥à¤ परिवार ने à¤à¤• दूसरे से लगाये रखी है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ को संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की जननी कहने में कतई संकोच नहीं है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कि à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के à¤à¤• कà¥à¤Ÿà¥à¤‚ब से हमें यह पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ मिलती है कि कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬ परिवार रूपी à¤à¤• माला है, जो कि परिवारिक रूप में हमें दिनचरà¥à¤¯à¤¾ के माधà¥à¤¯à¤® से दिखाई पढ़ती है।यही परिवार की माला कà¥à¤Ÿà¥à¤‚ब की माला à¤à¤• कचà¥à¤šà¥‡ धागे से बनी है, उस कचà¥à¤šà¥‡ धागे में विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के रंगों के फूल सूतà¥à¤°à¤¾à¤§à¤¾à¤° में बंधे हैं, कहने का मतलब यह है कि अगर इस कà¥à¤Ÿà¥à¤‚ब रूपी माला का कचà¥à¤šà¤¾ धागा यह कहे कि मेरे ऊपर यह माला बंधी है, मेरे असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ से इस माला का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हà¥à¤† है। और अलग-अलग रंगों के फूल यह कहें कि हम नहीं होते तो यह माला कैसे बनती अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ सही मायने में देखा जाये तो माला का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कचà¥à¤šà¥‡ धागे ओर विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ रंगों व फूलों के मिलन से हà¥à¤† है। तब जाकर इस माला का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ अथवा इस परिवार का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हà¥à¤† है। सà¤à¥€ फूलों को यह मालूम है कि हम जिससे बंधे है वह à¤à¤• कचà¥à¤šà¤¾ धागा है अगर हम थोड़ा à¤à¥€ à¤à¤Ÿà¤•à¤¾ दे देंगे तो यह कà¥à¤Ÿà¥à¤‚ब रूपी माला टूट जायेगी। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ कहने का मतलब यह है कि जिस माला में जिस कà¥à¤Ÿà¥à¤‚ब में अलग-अलग रंग अलग-अलग सोच के लोग à¤à¤‚व फूल रहते हैं जिनसे मिलकर à¤à¤• कà¥à¤Ÿà¥à¤‚ब का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हà¥à¤† है। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¤à¥€ à¤à¥€ यह सोचना नहीं चाहिठकि में लाल रंग का फूल हूं मेरी खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ अचà¥à¤›à¥€ है, और किसी को यह à¤à¥€ नहीं सोचना चाहिठकि में पीले रंग का फूल हूं मेरी खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ अचà¥à¤›à¥€ है, मैं मानता हूं कि खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ तो अचà¥à¤›à¥€ है पर यह जानना à¤à¥€ जरूरी है कि हम जिस धागे से बंधे है वह कचà¥à¤šà¤¾ धागा है, अगर सà¤à¥€ फूलों ने यह सोच लिया अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ परिवार के सà¤à¥€ सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ने यह सोच लिया तो उस कà¥à¤Ÿà¥à¤‚ब रूपी माला का अनà¥à¤¤ कà¤à¥€ नहीं होगा। बहरहाल हमें यह अचà¥à¤›à¥€ तरह मालूम है कि कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬ परिवार में अपने को शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ साबित करने से ही कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬ रूपी माला निरनà¥à¤¤à¤° टूट रही है, अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ अपने गà¥à¤£à¥‹à¤‚ का गà¥à¤£à¤—ान कर दूसरे के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उसे नीचा दिखाने की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ ही à¤à¤¾à¤°à¤¤ में रोज टूटते परिवारों की कहानी बन रही है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ की संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬ और परिवार से चलने वाले कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤•à¤²à¤¾à¤ªà¥‹à¤‚ की शैली रही है। जो किसी न किसी रूप में परिवार की गतिविधियों में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ में रिसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की डोर अटूट मानी जाती है, जिसमें पà¥à¤¯à¤¾à¤° और सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ का à¤à¤°à¤ªà¥‚र रंग चढ़ा रहता है, उस रंग की सà¥à¤—ंध उन लोगों को à¤à¥€ मोहित कर देती है जिन लोगों पर इन रिसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की डोर की छाया थोड़ी à¤à¥€ पढ़ जाती है। पर आधà¥à¤¨à¤¿à¤• यà¥à¤— में जीवन जीने के तरीके इन परिवार और कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬ रूपी माला को हर रोज तोड़ रहे हैं।जिसका असर माà¤-बाप à¤à¤¾à¤ˆ-बहन चाचा-चाची ताऊ और ताई से होती दूरियों में à¤à¤²à¤•à¤¤à¤¾ है। रिसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की डोर तो नाजà¥à¤• होती ही है, जरा सा à¤à¤¾à¤° पढ़ने पर टूटने से रोका नहीं जा सकता है। घर को पà¥à¤¯à¤¾à¤° का मंदिर कहा जाता है जंहा माता पिता से मिलता अपार पà¥à¤¯à¤¾à¤° और सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ जीवन जीने के तरीकों को और सà¥à¤—नà¥à¤§à¤¿à¤¤ कर देता है। जिसकी खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ उसी रूप में घर के बाहर à¤à¥€ दिखाई देती है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ के घरों में मिलने वाली संसà¥à¤•à¤¾à¤° की पूंजी अमूलà¥à¤¯ है जिसका कौई मौल नहीं है, फिर हम यह सब à¤à¥‚ल कर सà¥à¤–मयी संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को à¤à¤• दूसरे से अलग होकर विखणà¥à¤¡à¤¿à¤¼à¤¤ कर रहे हैं आखिर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚? कà¥à¤¯à¤¾ शहरी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ और बà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¡à¥‡à¤¡ कपड़े ने उस अपार पà¥à¤¯à¤¾à¤° को पूरी तरह से ढ़क दिया जिसका परिणाम विखणà¥à¤¡à¤¿à¤¼à¤¤ होते परिवारों के रूप में हमको à¤à¥à¤—तना पढ़ रहा है। कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬ परिवार के बिना जीवन जीने की परिà¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ अधूरी होती जा रहीं है। अकेलेपन की संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ हमारे देश में कहां से आई है इसका जवाब किसी के पास नहीं है? कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬ परिवार का नाम सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ को तो मनमोहक लगता है पर वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ परिवेश की आधà¥à¤¨à¤¿à¤• पीड़ी ने कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬ परिवार की मोहकता का गला धोंट के रख दिया है।
à¤à¤• दूसरे से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ कमाने और काम करने के अहम ने कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬ परिवार रूपी लीला का अंत कर दिया है। आखिर कब तक हमारे कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬ परिवार के लोग à¤à¤• दूसरे से विखणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ होते रहेंगे? यह अब समठके परे हो गया है। जरा-जरा सी बातों पर अपनों की अपनों पर वेदनाओं के तीर सीधे कà¥à¤Ÿà¥à¤®à¥à¤¬ परिवार की माला को कमजोर करने में लगे हà¥à¤ हैं।और सवेंदनाओं की दवाई अपनों के तीर से लगे घाव को à¤à¤°à¤¨à¥‡ में à¤à¥€ असमरà¥à¤¥ हो रही है। परिणामसà¥à¤µà¤°à¥‚प देश का हर आंगन आज बट चà¥à¤•à¤¾ है।