बेतà¥à¤•à¥€ इक धà¥à¤¨
काग़ज़ों में लिपटी
गीली, बैरंग उदासियाà¤
गà¥à¤®à¤¶à¥à¤¦à¤¾-से सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨
लंबी इक डगर
सूना, अनजान सफ़र
कà¥à¤› शबà¥à¤¦ अन-उकरे
काले बादलों में संघनित à¤à¤°à¥‡
कà¥à¤› शà¥à¤·à¥à¤• हो, चरमराà¤
समय की चिलचिलाती धूप में
कà¥à¤› वाषà¥à¤ªà¤¿à¤¤ हो,
ढूà¤à¤¢à¤¾ किठअपने निशाà¤
उसी गहरे अंधियारे कूप में
इचà¥à¤›à¤¾à¤“ं का बेबस समंदर
टूटी उमà¥à¤®à¥€à¤¦à¥‹à¤‚ की पतवार
वही मूरख कशà¥à¤¤à¥€
सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ किनारे पर
आ लगी ज़िंदगी के
à¤à¥Œà¤‚चक, सहमे कदम
बीच राह ही, ठिठककर रह गये
अरमान गिरते रहे लफà¥à¤œà¤¼ बन
कà¥à¤› अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ की तलाश में
मायूसी का नमक ओà¥
चà¥à¤ª ही सागर संग बह गये
और फिर à¤à¤Ÿà¤•à¥‡ रासà¥à¤¤à¥‡
सोचा किये राही
कà¥à¤¯à¥‚ठजà¥à¤¡à¤¼à¤¾ कोई कहीं
उमà¥à¤®à¥€à¤¦ जब कà¤à¥€ थी ही नहीं
पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ शबà¥à¤¦...........!
शबà¥à¤¦,रिकà¥à¤¤-सà¥à¤¥à¤¾à¤¨,शबà¥à¤¦,
शबà¥à¤¦.....? शबà¥à¤¦.....??
आह! वही चिर-परिचित मौन
वही दरà¥à¤¦à¥€à¤²à¤¾ इंतज़ार
कà¥à¤°à¤® टूटा, बिखरा...खो गया
बढ़ता रहा, तितर-बितर हो
उसी नैराशà¥à¤¯à¤¤à¤¾ की ओर!
लय, राग-अनà¥à¤°à¤¾à¤— से विमà¥à¤–
गतिहीन जीवन, अलकà¥à¤·à¤¿à¤¤-सी सोच
समय से परे,
अंतहीन यादों के
अनियंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ ताबूत में
रोज़ ही à¤à¤• मजबूर कील
खोदती जाती à¤à¥€à¤¤à¤° तक
खंडित सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का कà¥à¤à¤†
गोते लगाती, डूबती-उतराती
कृतà¥à¤°à¤¿à¤®-मà¥à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤¨ के आवरण तले
अपने होने का à¤à¤°à¤® बनाती
हारती-टूटती ज़िंदगी
और है à¤à¥€ कà¥à¤¯à¤¾
à¤à¤• 'अतà¥à¤•à¤¾à¤‚त कविता' के सिवा !