जरा ठहरो ! अधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤® की पाठशाला में धरà¥à¤® की à¤à¥‚मिका à¤à¤• उपकरण की तरह है। सà¤à¥€ उपासना पदà¥à¤§à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ मातà¥à¤° उस अनà¥à¤à¥‚ति तक पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ की सीढ़ियाठहैं। विचारकों और बà¥à¤²à¤¾à¤—रों की हतà¥à¤¯à¤¾ आग में घी डालकर उसे बà¥à¤à¤¾à¤¨à¥‡ की असफल कोशिश है। कोई à¤à¥€ धरà¥à¤® पदà¥à¤§à¤¤à¤¿Â अंतिम और सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ होने का दावा नहीं कर सकती। इसी पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ में धारà¥à¤®à¤¿à¤• असहिषà¥à¤£à¥à¤¤à¤¾ का जनà¥à¤® होता है। किसी की आलोचना से आसà¥à¤¥à¤¾ खंडित होती है तो यह हमारी मानसिक अपरिपकà¥à¤µà¤¤à¤¾ की निशानी है। यदि मेरी निषà¥à¤ ा अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ है, तो  किसी के आलोचना से कोई फरà¥à¤• नहीं पड़ना चाहिà¤à¥¤ यह संसार तो बहà¥à¤² विचारधाराओं का संगम है। à¤à¤¸à¤¾ तो होता रहेगा- "हाथी चले बाजार‚ कà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ à¤à¥‹à¤‚के हजार"- हमारी निज शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ चंद शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ की चोट से बिखरनी नहीं चाहिà¤à¥¤ धरà¥à¤® मनà¥à¤·à¥à¤¯ की वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ का मामला है। पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• को उसके सà¥à¤µà¤§à¤¾à¤°à¤¾ के साथ बहने दिया जाय कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि किसी à¤à¥€ विचार की हतà¥à¤¯à¤¾ असंà¤à¤µ है। धरà¥à¤® का समाजीकरण और वैशà¥à¤µà¥€à¤•à¤°à¤£ करना à¤à¤• खतरनाक अवधारणा है। इससे आप विशà¥à¤µ के नित नूतन जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ की धारा को बाधित करते हैं। शाशà¥à¤µà¤¤ शबà¥à¤¦ केवल-"परिवरà¥à¤¤à¤¨" है। न सृषà¥à¤Ÿà¤¿ चिरसà¥à¤¥à¤¾à¤¯à¥€ है‚न सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का कोई विचार चिरसà¥à¤¥à¤¾à¤¯à¥€ है। इसलिठधरà¥à¤® को विचारों के वेग में बहने दीजिठकोई असहिषà¥à¤£à¥à¤¤à¤¾ की दीवार मत खड़ी कीजिà¤à¥¤ सागर की तरह हर लहर को पी जाइà¤à¥¤ आपके असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ को कोई नहीं मिटा सकता। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ ने आपके असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° लिया है- वसà¥à¤§à¤¾ के मानव आप सà¤à¥€ का धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦!