à¤à¤• अनवरत संघरà¥à¤·
जिसके साथ जूठरही है
हर सà¥à¤¬à¤¹ हर शाम
वो जलकर जी रही है
उमà¥à¤®à¥€à¤¦ की किरण लिà¤
सफलता की आस लिà¤
जीती जा रही है
लेकिन अपनों से ही
छली जा रही है
ममता, पà¥à¤¯à¤¾à¤° व सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ की मूरà¥à¤¤à¤¿ वो
सहन करती है समय के थपेड़े वो
जी को जलाकर सà¥à¤•à¥‚न देती है जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚
मंजिल पाने के लिठबà¥à¤¤à¥€ जा रही है
लेकिन अपनों से ही
छली जा रही है