ग़ज़ल- मेरे ज़ख़्मों को हवा देता है...

मेरे ज़ख़्मों को हवा देता है

आईना दर्द बढ़ा देता है

 

जब भी जाता हूँ रूबरू उसके

वो मुझे खुद में छिपा देता है

 

लड़खड़ाती है, संभल जाती है

कौन कश्ती को दुआ देता है

 

जो तुम्हें बख़्शी है ख़ुदा ने वो

हर किसी को न अदा देता है

 

चंद लम्हों में तसव्वुर तेरा

कई जन्मों का मज़ा देता है

 

अपनी हस्ती में एक सहरा लिये

रोज़ दरिया को सदा देता है

 

ख़ुद ही अनमोल हाथ पर लिखकर

जाने क्यूँ ख़ुद ही मिटा देता है


लेखक परिचय :
के. पी. अनमोल
फो.नं. -08006623499
ई-मेल - [email protected]
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