तुम्हारी ज़िम्मेदारियाँ

जिन
जिम्मेदारियों
को तुम
बोझ
समझकर
लाद देती हो
किसी
दूसरी स्त्री
पर
चंद रुपये देकर
हमारी
भी
गलती-दुखती
हड्डियाँ
चाहती है
मुक्त होना
तुम्हारे
इस बोझ से
लेकिन
हम चाहकर भी
छोड़ नहीं पातीं
तुम्हारी
जिम्मेदारियाँ
क्योंकि
हम स्त्री नहीं
तुम्हारे
घर की
सिर्फ आया है।


लेखक परिचय :
पूजा प्रजापति
फो.नं. -
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