मेरे विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में आज जिस यà¥à¤µà¤• का आगमन हà¥à¤†, उसका नाम 'पà¥à¤°à¤à¤¾à¤¤ कौशिक' है। बातों के दरमयान पता चला कि वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में मैं जिस विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में पदसà¥à¤¥ हूà¤, वह वहीठका à¤à¥‚तपूरà¥à¤µ छातà¥à¤° रह चà¥à¤•à¤¾ है।आज वह à¤à¤• सफल अà¤à¤¿à¤¯à¤‚ता पद पर कारà¥à¤¯à¤°à¤¤ है। उससे मिलकर आज सारा विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ गौरवानà¥à¤µà¤¿à¤¤ महसूस कर रहा था। और हो à¤à¥€ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न....छोटे सà¥à¤¤à¤° से पनपी बड़ी उपलबà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤ सदैव गरà¥à¤µ की सीमा से परे होती ही हैं।
आप कहीं यह तो नहीं सोच रहे हैं कि हमें इन बातों से कà¥à¤¯à¤¾ सरोकार। तो आप सही à¤à¥€ हैं जनाब! दूसरों की सफलता हमें कब रास आई है, जो अब रास आà¤à¤—ी। किनà¥à¤¤à¥ मेरे लिठयह चकित करने के विषय से कम न था। यहाठबात सिरà¥à¤« सफल होने की नहीं, वरन सरकारी सà¥à¤•à¥‚लों से पॠकर सफल होने की है। सरकारी सà¥à¤•à¥‚ल..? अरे! यह कोई शà¥à¤°à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ शबà¥à¤¦ नहीं है à¤à¤¾à¤ˆ, मगर हाठकिसी संघरà¥à¤· से कम à¤à¥€ नहीं। संघरà¥à¤· à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾, जो अपने ही अà¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ के परतों से à¤à¥à¤¨à¤ रहा है। सफलता की यह, कैसी जदà¥à¤¦à¥‹à¤œà¤¹à¤¦ है, कà¤à¥€ उस कीचड़ में खिले कमल से पूछना, जिसने अपने ही बूते पर खिलना सीखा है। कब? किस माली ने उसे संजोया, कब उसकी देखरेख में किसने अपनी नींदें हराम की, कब खाद डाले और कब उसके लगे कीचड़ को साफ़ किया? किनà¥à¤¤à¥ जिसे खिलना है, उसे कब, कौन रोक पाया है। सरकारी सà¥à¤•à¥‚लों में पà¥à¤¨à¥‡ वाले बचà¥à¤šà¥‡ उस कमल की à¤à¤¾à¤‚ति ही होते हैं, जो अà¤à¤¾à¤µ रूपी कीचड़ में होने के बावजूद à¤à¥€ खिलने का संघरà¥à¤· जारी रखते हैं।
à¤à¤¸à¤¾ कह कर, मैं अपने ही जमात वालों से पंगा नहीं ले सकती। किनà¥à¤¤à¥ इस कटॠसतà¥à¤¯ से मेरा इंकार कर देना à¤à¥€ वाजिब नहीं। 'कमल' का खिलना पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की देन है, तो इन बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ का à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ (खिलना) à¤à¥€ राम à¤à¤°à¥‹à¤¸à¥‡ ही जान लो। à¤à¤¸à¤¾ नहीं इन पà¥à¤·à¥à¤ªà¥‹à¤‚ (बचà¥à¤šà¥‹à¤‚) की देखरेख के लिठकोई माली नहीं, हैं तो...मगर अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ कितने ईमानदार? यह तो उस माली के हृदय की गवाही ही बयां करेगी। ये पà¥à¤·à¥à¤ª फलें-फूलें, इसके लिठà¤à¥€ खूब योजनायें बनती, मगर हाय रे! योजनायें ऊपर से नीचे आते-आते इतनी थक जाती हैं कि अपनी साà¤à¤¸à¥‡à¤‚ बचा नहीं पातीं और दम तोड़ देती हैं। हृदय आहत तो तब होता है, जब हम यह सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤°à¤¨à¥‡ लगते हैं कि यहाठहर बचà¥à¤šà¤¾ 'पà¥à¤°à¤à¤¾à¤¤ कौशिक' नहीं हो सकता या बन सकता। खिलने की चाहत à¤à¤²à¤¾ किसकी न होगी? à¤à¤¸à¤¾ कौन होगा जो मà¥à¤°à¤à¤¾à¤¨à¥‡ की नियत रखता हो।
इस बार जब आप 'बालदिवस' मनाने की तैयारी करें, तो मेरा आप सà¤à¥€ से à¤à¤• अनà¥à¤°à¥‹à¤§ है कि अपनी इस तैयारी में ,अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ थोड़ी ईमानदारी को à¤à¥€ शामिल कर लें। मà¥à¤à¥‡ नहीं लगता कि इस अवसर पर अपने नौनिहालों को इससे अचà¥à¤›à¤¾ कोई और तोहफा होगा। पहल तो करें, फिर देखें à¤à¤• कà¥à¤¯à¤¾, कई “पà¥à¤°à¤à¤¾à¤¤” समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ विशà¥à¤µ को पà¥à¤°à¤œà¥à¤µà¤²à¤¿à¤¤ करेगें।
कीचड़ में ही सही, खिलने तो दो ।
बड़े मौके न सही à¤à¤• मौका तो दो।