ग़ज़ल

जीना है तुझको कैसे तन्हा, तू फैसला कर
खुशियों से राय ले या गम से मशवरा कर।

दुनिया की भीड़ में, कहीं मैं गुम न हो जाऊँ
ऐ आईने! तू मुझे अब माजी अता कर।

थक कर न बैठ जाना राहों में, ऐ मुसाफिर
मंजिल तुझे मिलेगी, चलने का हौसला कर।

यादों के गुलिस्ताँ से खुशबू -सी आ रही है
क्यों दूर हो गए तुम, मेरे करीब आकर।

कर लेना लाख कोशिश तुम भूलने की हमको
याद आयेंगे तुम्हें हम, देखो हमें भुलाकर।


लेखक परिचय :
अशरफ जहाँ
फो.नं. ---
ई-मेल - --
इस अंक में ...