“ à¤à¤¿à¤–ारी की पूà¤à¤œà¥€ â€
श............ आज तो बहà¥à¤¤ ठंड है! हाथ मलता हà¥à¤† मैं बैग लटकाये सà¥à¤¬à¤¹-सà¥à¤¬à¤¹ तैयार होकर कॉलेज के लिठनिकला तà¤à¥€ अचानक मेरी नज़र à¤à¤• बूढ़े आदमी पर गयी-बिलà¥à¤•à¥à¤² गंदा, फटे हà¥à¤¯à¥‡ कपड़े पहने, पर चेहरे पर रौनक और चमक à¤à¤¸à¥€ मानो सà¥à¤¬à¤¹ की सारी ताज़गी उसके चित में पैठकर गयी हों। मैं आगे बढ़ा और वह à¤à¥€ मेरे पीछे-पीछे बढ़ता गया मेरा पूरा धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ उसी पर खिच गया। वह पता नही किन खà¥à¤¯à¤¾à¤²à¥‹à¤‚ में खोया हà¥à¤† था। जब मैं बस सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के पास पहà¥à¤‚चा और थोड़ी देर पीछे देखा तो वह बूढ़ा आदमी जो मेरे पीछे था वह अब सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ के गेट के बाहर फटी हà¥à¤¯à¥€ चदà¥à¤¦à¤°( कथोला ) को जमीन पर बिछाकर बैठगया और उसके चेहरे की सारी रौनक, मन की सारी चंचलता और खà¥à¤¶à¥€ अचानक दà¥à¤– और वेदना से à¤à¤° गयी। अब उसका चेहरा पूरी तरह उदास, नीरस, सांसारिक वेदनाओ और पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤¡à¤¼à¤¨à¤¾à¤“ से à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होने लगा। उसके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ मेरी उतà¥à¤¸à¥à¤•à¤¤à¤¾ अचानक तीवà¥à¤° हो गयी और और मेरे मन में न जाने कà¥à¤¯à¥‚ठà¤à¤• अजीब सी सरसराहट और गà¥à¤¦à¤—à¥à¤¦à¥€ होने लगी। à¤à¤• तरफ मेरे कॉलेज जाने का समय हो गया था और दूसरी तरफ यह अचरज में डालने वाला दृशà¥à¤¯! इसी बीच बूढ़े ने इधर-उधर देखा और धीरे से अपने जेब से चिलà¥à¤²à¤°( छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥‡ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ ) निकाल कर चदà¥à¤¦à¤° पर बिखेर कर आà¤à¤–ों में आà¤à¤¸à¥‚ à¤à¤°à¤•à¤° à¤à¤•à¤‚घा होकर लेट गया और हे बाबू ! हे à¤à¤ˆà¤¯à¤¾ ! की वेदना पूरà¥à¤£ आवाज से आते-जाते लोगों को आवाज लगाने लगा..........................।
मैं पूरी तरह सोच में डूब गया कि इस à¤à¤¿à¤–ारी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ चदà¥à¤¦à¤° पर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ के डाले गठरà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤‚गिकता आखिर कà¥à¤¯à¤¾ है? कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤¿à¤–ारी अपने रà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ कर लोगों की सहानà¥à¤à¥‚ति को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर रहा था? या à¤à¤• वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ को अपने वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त सà¥à¤¤à¤° पर चलने का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ कर रहा था ........................?
वाणिजà¥à¤¯ का छातà¥à¤° होने के नाते मेरा पूरा धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ उसकी इस वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° शैली और अदà¥à¤à¥à¤¤ कौशल की ओर पूरी तरह लचक गया था। वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° में कहीं पढ़ा था कि वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° को चलाने के लिठपूà¤à¤œà¥€ की महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥‚मिका होती है पर इसका अनà¥à¤à¤µ वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• रूप से आज हà¥à¤†à¥¤
जब मैं ये सब देख चà¥à¤•à¤¾ तब à¤à¤¿à¤–ारी के पास जाकर पूछा, “दादा जी, आपने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ के रà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤‚ को इस चदà¥à¤¦à¤° पर कà¥à¤¯à¥‚ठफेका?†à¤à¤¿à¤–ारी थोड़ी देर तक मेरी तरफ घूर कर देखà¥à¤¨à¤¨à¥‡ लगा, मैं थोड़ा सहम गया पर पà¥à¤¨à¤ƒ पूछने पर उसने उतà¥à¤¤à¤° दिया – “आज के कलयà¥à¤— में बिना कà¥à¤› लगाठकà¥à¤› नही मिलता बचà¥à¤šà¤¾ तू नादान है अगर मैं इस चदà¥à¤¦à¤° पर रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ न फेकता तो शायद लोग मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€à¤– नही देते और आखिर à¤à¥€à¤– की आदायगी तो करनी ही पड़ेगी न।“
मैं à¤à¤¿à¤–ारी की बातें सà¥à¤¨ कर चौक गया और थोड़ी देर वहीं खड़ा हà¥à¤† सोचता रहा कि कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¥€à¤– मांगने के लिठà¤à¥€ आज के इस वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ यà¥à¤— में पूà¤à¤œà¥€ की जरूरत है? आखिर ये विचार à¤à¤¿à¤–ारियों को दिया किसने? कà¥à¤¯à¤¾ वासà¥à¤¤à¤µ में आज à¤à¥€à¤– मांगना à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ के दायरे में आ गया है ....................?????