सम्पादकीय

सुविचार
“आपका हृदय ईमान से भरा है तो एक शत्रु क्या, सारा संसार आपके सम्मुख हथियार डाल देगा।”

मनुष्य स्वभाव से ही सुखभोगी है,कष्ट में जीना उसे पसंद नहीं। वह हर हाल में सुखी रहना चाहता,कष्ट से उत्पन्न छटपटाहट उसके लिए सदा से असहनीय है। किन्तु हाँ, यहाँ सुख की परिभाषाएँ सब के लिए अलग-अलग हो सकती हैं। कोई स्वयं के सपनों को साकार कर सुख पाता है, तो कोई दूसरों के सपनों को उजाड़ कर सुखी होता है। यहाँ एक प्रश्न, जो किसी भी भलमनसाहत को विचलित कर सकती है कि उजाड़ देने की ऐसी कौन-सी मनः स्थिति होती होगी जो मानव को ऐसे हिंसात्मक कृत में आनंद देता होगा? यह प्रश्न मस्तिष्क को उधेड़ डालता है। फिर भी मनुष्य सदा ही हिंसा का विलोम प्रिय रहा है। मानवीय संवेदनाएँ हमेशा से ही शांति की चाह में भटकती रही है। अगर ये बातें सच हैं, तो फिर क्यों? क्यों, कुछ लोगों के लिए हिंसा, आनंद का अभिप्राय बन चुका है। क्यों? सतरंगी सपनों के रंगों में लाल रंग ही भाने लगा है।

विकृत आनंद का जायजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि विगत माह, दुनिया भर में जिहादी हिंसा में हर घंटे सात लोगों की मौतें हुईं। जिनमें अस्सी प्रतिशत मौतें सिर्फ चार देशों में हुई और इनमें जिहादी हिंसा के लिए इराक सबसे खतरनाक देश के रूप में सामने आया है जहाँ 233 हमलों में 1770 लोगों की जानें गयीं। इतनी जानें, कोई कष्टों के बोझ तले नहीं ले सकता, यह तो आनंद से सराबोर हो कर किया गया अमानवीय कृत है, जो उनके आनंद में इजाफा करने के सिवाय और कुछ न होगा। आनंद की ये कैसी तृष्णा है, जो लहू के सैलाब से भी बुझ नहीं पा रही। इसे जिहाद का नाम दिया जा रहा है। जिहाद या अंधी जिद्द? जिद्द सिर्फ अमल करने की, सही-गलत के भेद से परे का अमल। और जिद्द, सब कुछ खत्म करने की।

जिहाद कभी जान लेने की मुखालफत नहीं कर सकता।अपने स्वार्थ को किसी धर्म या जिहादी अंजाम का नाम दे कर जश्न करना भी महज आनंद की मानसिक विकृतियाँ हैं, जो दूसरों के कष्ट से ही सुख पाता है। फिर भी मन यह मानने को कतई तैयार नहीं होता कि क्या कोई सहृदयी ऐसा भी हो सकता है जो मात्र क्रोध भाव में ही जी करके अपनी व दूसरों की जीवन लील जाये। यह कैसे सम्भव है कि किसी के लिए जीवन के बाकि रसों का कोई महत्व ही न हो।

वह आनंद भी कम मादक न होगी जब हजारों बच्चों को अनिश्चितता के भंवर से निकालकर स्कूलों तक पहुँचाया गया होगा,उनके हंसने,रोने, स्कूल जाने, सपने देखने, आजद हो कर खुली हवा में साँस लेने के लिए जेहद किया गया होगा या आतंकियों के खिलाफ खड़े होकर स्वयं को घायल कर लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज बुलंद किया गया होगा।

आनंद, विचारों का फेर है,किसी को ध्वंस में आनंद मिलता है तो किसी को निर्माण में। सही अर्थ में सुख तो वही है, जिसे भोगने में ईमान जाया न हो और जमीर की लाज बची रहे...


लेखक परिचय :
मनोज कुमार सैनी
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