सोचती हूà¤, अक़à¥à¤¸à¤° ही बैठी-बैठी
कि कà¥à¤¯à¥‚ठकरती हूठमैं, तà¥à¤®à¤¸à¥‡ बातें,
बातें जो à¤à¤•à¤¤à¤°à¤«à¤¼à¤¾ हैं, बेसिरपैर की
बातें कà¥à¤› अनसà¥à¤¨à¥€ और अनà¥à¤¤à¥à¤¤à¤°à¤¿à¤¤ ही...
जिनका कोई सरोक़ार ही नहीं
तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से, बेमानी हैं वो,
परे à¤à¤•à¤¦à¤® तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ से
बेमतलब सी, बेतà¥à¤•à¤¼à¥€, पागलपन à¤à¤°à¥€ बातें.....
इंतज़ार-सा रहता है, फिर à¤à¥€
कि कà¤à¥€ कà¥à¤› जवाब ही मिले,
या बदले में कोई सवाल तो हो
सफाइयाठदेनी पडें, à¤à¥à¤à¤à¤²à¤¾à¤•à¤°
कà¥à¤› पल खà¥à¤¶à¥€ के, या कà¤à¥€ उदास तो हों.....
चाहती हूà¤, कि मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾ दो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤¨à¤•à¤°
या फिर à¤à¤¿à¤¡à¤¼à¤• ही दो कà¤à¥€
जीकर देखें हम à¤à¥€ तो ज़रा
जैसे जीते हैं बाकी ये सà¤à¥€......
पर वक़à¥à¤¤ à¤à¥€ कितनी मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² 'शै' है
कि इंसान से सब कà¥à¤› छीन लेती है,
न हà¤à¤¸à¥€, न चैन के à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ बाकी
समय रहते ये सब ही निगल लेती है.....
दूर तलक़ फैला है आसमाà¤, और
उकेरे बादलों ने चितà¥à¤° कई दफ़ा,
देखा किठहम बदलती तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‹à¤‚ को
यूठही à¤à¤•à¤Ÿà¤• से, कà¤à¥€ कà¥à¤› à¤à¥€ न कहा......
आज़माना चाहते हैं, 'अजà¥à¤žà¤¾à¤¤' से
खà¥à¤¦ को इस मरà¥à¤¤à¤¬à¤¾, हम à¤à¥€ इस क़दर
देखें तो ज़रा, ये 'ज़िंदगी' अब हमें
और कितने दरà¥à¤¦ देती है................!!