समय की à¤à¤‚à¤à¤¾ में जीवन के पात बिखर गये
मैं था ‚ तà¥à¤® थी चाà¤à¤¦ और बदली à¤à¥€ वही थी
पर न कसक थी‚ न आगà¥à¤°à¤¹ था
न कोई उनà¥à¤®à¤¾à¤¦ था‚ न कोई अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ थी
तà¥à¤® à¤à¥€ चà¥à¤ª थी‚ मैं à¤à¥€ चà¥à¤ª था
à¤à¤• अवà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ लकीर थी
जो जोड़ती थी हम दोनो को
वो बीच से मिट गयी थी
काश! कोई à¤à¤¸à¥€ लेखनी होती‚
जो उस मिटी लकीर में सà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥€ à¤à¤°à¤•à¤°
उसे पूरा कर देती
वो कौन सी तà¥à¤µà¤°à¤¾ थी
जिसमें हम मिल गये थे
वो कौन सा जà¥à¤µà¤¾à¤° था
जो हमें विलगा गया
आज à¤à¥€ à¤à¤• टीस मेरे हृदय पटल को
दरà¥à¤¦ से सिहरा जाती है
वो कौन सी खता थी मेरी
जो तà¥à¤® होकर à¤à¥€ मेरी नही हो