स्त्री

एक अनवरत संघर्ष
जिसके साथ जूझ रही है
हर सुबह हर शाम
वो जलकर जी रही है
उम्मीद की किरण लिए
सफलता की आस लिए
जीती जा रही है
लेकिन अपनों से ही
छली जा रही है
ममता, प्यार व स्नेह की मूर्ति वो
सहन करती है समय के थपेड़े वो
जी को जलाकर सुकून देती है जिन्हें
मंजिल पाने के लिए बढ़ती जा रही है
लेकिन अपनों से ही
छली जा रही है


लेखक परिचय :
लक्ष्मी जैन
फो.नं. ---
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