शब्द और पंख

एक किसान की अपने पड़ोसी से खूब जमकर लड़ाई हुई।बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ तो उसे खुद पर शर्म आई। वह इतना शर्मसार हुआ की एक साधु के पास पहुंचा और पूछा , 'मैं अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहता हूँ।' साधु ने कहा, 'पंखों से भरा एक थैला लाओ और उसे शहर के बीचों -बीच उड़ा दो ।'किसान ने ठीक वैसा ही किया ,जैसा की साधु ने उससे कहा था।

लौटने पर साधु ने उससे कहा ,'अब जाओ और जितने भी पंख  उड़े है,उन्हें बटोर कर थैले में भर लाओ। नादान किसान जब वैसा करने  पहुंचा तो उसे मालूम हुआ की यह काम मुश्किल नहीं बल्कि असंभव है।खैर ,खाली थैला ले वह वापस साधु के पास आ गया ।

यह देख साधु ने उससे कहा , 'ऐसा ही मुंह से निकले शब्दों के साथ भी होता है ।' इसलिए हमेशा अपने शब्दों को तौल कर बोलें।


लेखक परिचय :
लक्ष्मी जैन
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