कविता-
जिन आà¤à¤–ों में सूरत
संजोये थे तेरी
अब उनमें ही नींदों
के साठमिलेंगे
तू चाहे न चाहे
यूठगाहे-बगाहे
किसी रासà¥à¤¤à¥‡ पर
हम फिर से मिलेंगे
वही होंगी
चाà¤à¤¦à¤¨à¥€ की सरà¥à¤¦ रातें
पर सूरज तले
अब अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ मिलेंगे
यूठमंजिल-ओ-मंजिल
हरम और दर पे
तू ढूंढेगा 'अनà¥à¤°à¤¾à¤—'
को दर-बदर
तू चाहेगा हमसे
वही आशनाई
मगर हम न होंगे
न होगी खà¥à¤¦à¤¾à¤ˆ
जिन आà¤à¤–ों में सूरत
संजोये थे तेरी
अब उनमें ही नींदों
के साठमिलेंगे