कवितालोक

कविता-

जिन आँखों में सूरत
संजोये थे तेरी
अब उनमें ही नींदों
के साए मिलेंगे

तू चाहे न चाहे
यूँ गाहे-बगाहे
किसी रास्ते पर
हम फिर से मिलेंगे

वही होंगी
चाँदनी की सर्द रातें
पर सूरज तले
अब अँधेरे मिलेंगे

यूँ मंजिल-ओ-मंजिल
हरम और दर पे
तू ढूंढेगा 'अनुराग'
को दर-बदर

तू चाहेगा हमसे
वही आशनाई
मगर हम न होंगे
न होगी खुदाई

जिन आँखों में सूरत
संजोये थे तेरी
अब उनमें ही नींदों
के साए मिलेंगे


लेखक परिचय :
अनुराग बाजपेई
फो.नं. -09977867626
ई-मेल - [email protected]
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