"जिस के दिल से माठकी मोहबà¥à¤¬à¤¤ चली गई....
समà¤à¥‹, उसके हाथ से जनà¥à¤¨à¤¤ चली गई...."
मनà¥à¤·à¥à¤¯ जनà¥à¤® से ही रिशà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के घेरों में घिरा रहता है, उन रिशà¥à¤¤à¥‹à¤‚ में सबसे छोटा शबà¥à¤¦ रखने वाला रिशà¥à¤¤à¤¾ "माà¤" का है। माà¤, शबà¥à¤¦ जितना छोटा है, उसका à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ उतना ही बड़ा। à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸, à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ शबà¥à¤¦, जिसके लिखते ही, बोलते ही, सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही हृदय पà¥à¤°à¥‡à¤® से à¤à¤° जाता है। चेहरे पर गरà¥à¤µ à¤à¤°à¥€ मà¥à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤¨ और à¤à¤• पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€-सी छवि। वो छवि जो जनà¥à¤® के बाद, पà¥à¤°à¤¥à¤® दृशà¥à¤¯à¤¾ से ही मन- मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• में समा जाती है। शायद इसीलिठमाठको संसार की शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ उपमाओं से नवाजा गया है।
यूठतो सालों à¤à¤° कोई न कोई दिवस 'डे', जयंतियाठमनायी जाती रहती है। मगर जब महिना मई का हो और दिवस 11 (गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹), तो इस पावन दिन को नजरअंदाज करना, मानो सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को करà¥à¤¤à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¿à¤¹à¥€à¤¨ करने जैसा होगा। मातृ दिवस, माठशबà¥à¤¦ पर चरà¥à¤šà¤¾à¤à¤, सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°-सा कारà¥à¤¡, कोई तोहफा और मॉम 'आई लव यू' कह देना और à¤à¤• कवायद पूरी। तरीका चाहे जो à¤à¥€ हो बात यहाठअà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की है। जिसका समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ जीवन ही पà¥à¤°à¥‡à¤®, सà¥à¤¨à¥‡à¤¹, समरà¥à¤ªà¤£ से पूरà¥à¤£ हो, उसके लिठहमारा à¤à¤• दिन का समरà¥à¤ªà¤£ ठीक है कà¥à¤¯à¤¾? सही मायने में, ये तो उनके लिठहै, जिनके पास अब अपनों के लिठसमय नहीं रह गया।किनà¥à¤¤à¥ अà¤à¥€ à¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समाज इतना दूषित नहीं हà¥à¤† कि उनके पास अपनी जननी के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ कृतजà¥à¤žà¤¤à¤¾ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करने के लिठसाल का कोई à¤à¤• दिन का इनà¥à¤¤à¤œà¤¾à¤° करना पड़े, ये तो कà¥à¤› पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ रवायतें हैं, जिसे हमने बड़े पà¥à¤¯à¤¾à¤° से गले लगा लिया है।
वो कहते है न कि à¤à¤—वान हर जगह नहीं होते, इसलिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने संसार में माठकी रचना की। ताकि हम उनके साये में सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ महसूस कर सके, अपनी तकलीफें बता सकें। आज à¤à¥€ जब कोई दà¥à¤ƒà¤–, परेशानी, हमें सताने लगती है तो हमें पहला सà¥à¤®à¤°à¤£ माठका ही आता है। खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में à¤à¤²à¥‡ ही उनकी यादें कà¥à¤› धूमिल हो जायें मगर कराहते हà¥à¤ मà¥à¤– से 'माà¤' ही निकलता है। आज इस à¤à¤¾à¤—-दौड़ à¤à¤°à¥€ जिंदगी में जब हम खà¥à¤¦ को थका, निराश, बोà¤à¤¿à¤² महसूस करने लगते हैं, तो माठका आà¤à¤šà¤² ही है जो हमें असीम शीतलता से à¤à¤° देता है। कà¥à¤¯à¤¾ बात करूठमैं माठकी....माठतो जिनà¥à¤¦à¤—ी का लिबास है, दूध में घà¥à¤²à¥€ शकà¥à¤•à¤° की मिठास है। माठपीड़ा में बजती संगीत की धà¥à¤¨ है, लोरी सà¥à¤¨à¤¤à¥€ à¤à¥Œà¤°à¥‡à¤‚ की गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨ है। माठतपती धूप में बादलों का साया है, माठतो माठहै, यूà¤à¤¹à¥€ नहीं कहा जाता कि माठके पैरों तले जनà¥à¤¨à¤¤ है।
आज हम अपनी वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤à¤¤à¤¾ के कारण रिशà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की गरिमा को कहीं न कहीं खोते जा रहे हैं। आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ हम पर हावी होते जा रही है। आज मनà¥à¤·à¥à¤¯ के पास सà¥à¤µà¤¯à¤‚ के लिठà¤à¥€ समय नहीं है।शायद इसलिठही à¤à¤¸à¥‡ दिवस को मनाया जाने लगा, ताकि कोई à¤à¤• दिन तो हो जब हम अपनों के लिà¤, उनके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¥‡à¤® व आà¤à¤¾à¤° वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ कर सकें। आधà¥à¤¨à¤¿à¤• होना अचà¥à¤›à¤¾ है, मगर आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ के कारण अपने नैतिक मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को नषà¥à¤Ÿ कर देना गलत है।
ये सच है दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ ! कि जो हमारे पास होता है, उसकी कीमत हमारे लिठकम हो जाती है। माठके बारे में हम कितना à¤à¥€ कह दें, वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¨ दें, लेख लिखें, कविता लिखें, कीमत तो वही बता सकते हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी माठको खो दिया है।
बहà¥à¤¤ संà¤à¤¾à¤²à¤¾ है तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚, हो सके तो अब तà¥à¤® संà¤à¤² लो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚...