ग़ज़ल- आँखों ने किसी ग़ैर से...

आँखों ने किसी ग़ैर से परदा नहीं किया

पर तेरे सिवा और को देखा नहीं किया

 

तकिये तुम्हारी याद के पुख़्ता सुबूत हैं

कैसे कहूँ कि मैं कभी रोया नहीं किया

 

जबसे पड़ी है कांधों पे घर की ज़रूरतें

रातों में कभी चैन से सोया नहीं किया

 

इक तुमको याद करने की आदत-सी हो गयी

वैसे तो आज तक कोई नश्शा नहीं किया

 

ख़ुशियाँ इधर-उधर से यूँ ही मिलतीं रहीं हैं

ख़ुश होने का सबब कोई ढूँढा नहीं किया

 

कोशिश रही सदा कि बुरा हो न किसी का

डाली से एक फ़ूल भी तोड़ा नहीं किया

 

अनमोल बेटियाँ ही हैं हर घर की बरकतें

जबकि उन्हें किसी ने भी सोचा नहीं किया


लेखक परिचय :
के. पी. अनमोल
फो.नं. -08006623499
ई-मेल - [email protected]
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