आषाॠबनकर ही अधर के पास आना चाहता हूà¤,
मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ का उचà¥à¤›à¥à¤µà¤¾à¤¸ पाना चाहता हूà¤à¥¤
आषाà¥, यानि धरती के आà¤à¤šà¤² को à¤à¤¿à¤—ोने की पहली तैयारी।
गà¥à¤°à¥€à¤·à¥à¤® की विदाई का सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ लेकर आता है ये आषाà¥à¥¤ फागà¥à¤¨ के बाद और सावन से पहले लड़कपन और यौवन को अपने अनà¥à¤¦à¤° समाहित ये माह, बारिश की ननà¥à¤¹à¥€ बूà¤à¤¦à¥‹à¤‚ से माटी और वातावरण को अपनी सोंधी खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ से à¤à¤° देता है। à¤à¤¸à¥€ खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ जो जीवन को à¤à¥€ नई ताजगी से सराबोर कर जाता है।
आषाॠमाह का पà¥à¤°à¤¥à¤® दिवस धरती और अमà¥à¤¬à¤° के मिलन का परिचायक है। जैसे कोई पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ लमà¥à¤¬à¥‡ वियोग के उपरांत अपने पà¥à¤°à¤¿à¤¯ के हलà¥à¤•à¥€ सी छूवन से ही खिल उठती है, वैसे से गà¥à¤°à¥€à¤·à¥à¤® के ताप से तड़पती धरती आषाॠकी पहली बूंद से à¤à¥‚म उठती है। ननà¥à¤¹à¥€à¤‚- ननà¥à¤¹à¥€à¤‚ बूà¤à¤¦à¥‡à¤‚ धरती पर यूठथिरकती हैं मानो ये बूà¤à¤¦à¥‡à¤‚ धरती के आà¤à¤šà¤² पे नृतà¥à¤¯ की जà¥à¤—ल बंदी कर रही हों। इस माह की महतà¥à¤¤à¤¾ तो इसी बात से लगायी जा है कि à¤à¤¸à¥‡ मनोरम दृशà¥à¤¯ को देखकर ही कवि कालिदास ने 'मेघदूतम' की रचना की होगी। बात जब रचनाओं की निकली ही है तो हम मोहन राकेश की à¤à¤•à¤¾à¤‚की 'आषाॠका à¤à¤• दिन' को à¤à¥‚ल नहीं सकते। इस à¤à¤•à¤¾à¤‚की में कालिदास की महतà¥à¤µà¤¾à¤•à¤¾à¤‚कà¥à¤·à¤¾ और मलà¥à¤²à¤¿à¤•à¤¾ के पà¥à¤°à¥‡à¤® में कितना जरà¥à¤°à¥€ पातà¥à¤° था ये आषाॠका पà¥à¤°à¤¥à¤® दिन। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤°à¥‚पी वरà¥à¤·à¤¾ में à¤à¥€à¤—ी मलà¥à¤²à¤¿à¤•à¤¾ मदमसà¥à¤¤ पà¥à¤°à¥‡à¤® में टूटकर à¤à¥€ पà¥à¤°à¥‡à¤® को नहीं टूटने देने वाली नायिका à¤à¤• अविसà¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯ पातà¥à¤° के रूप में हमारे सामने उजागर होती है यहीं सफलता और पà¥à¤°à¥‡à¤® में à¤à¤• के दà¥à¤µà¤¨à¥à¤¦ से जूà¤à¤¤à¥‡ कालिदास à¤à¤• रचनाकार और à¤à¤• आधà¥à¤¨à¤¿à¤• मनà¥à¤·à¥à¤¯ के मन की पहेलियों को सामने रखते हैं।
सच ही तो है आज के इस आधà¥à¤¨à¤¿à¤• परिवेश में यदि बात पà¥à¤°à¥‡à¤® रूपी हलà¥à¤•à¥€ फà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की करें, तो अब मन यूठनहीं à¤à¥€à¤—ता।सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥, मानव मन को इतना सखà¥à¤¤ बना चूका है कि अब ये ननà¥à¤¹à¥€à¤‚ बूà¤à¤¦à¥‡à¤‚ जाने कहाठसोख लिये जाते हैं। ये फà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡à¤‚ अब बस आà¤à¤–ों को आराम देतीं है, मन तो जैसे घनघोर वरà¥à¤·à¤¾ की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ में लगा रहता है। जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ की चाहत में अब हमें ये हलà¥à¤•à¥€ ननà¥à¤¹à¥€à¤‚ बà¥à¤à¤¦à¥‡ ऊपर से सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ कर के चल देतीं हैं।
अब तो जैसे आषाॠà¤à¥€ दगाबाज हो गया है। अब वह à¤à¥€ सहमा-सहमा सा रहता है। उसके सहमने के पीछे कहीं न कहीं हम ही जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° हैं। मनà¥à¤·à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के साथ किया गया अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤° ही इसका मूल कारण है। किनà¥à¤¤à¥ सचà¥à¤šà¥‡ हà¥à¤°à¤¦à¤¯ से मनन करें तो सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ यही है कि पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ हमारे à¤à¥€à¤¤à¤° आज à¤à¥€ कà¥à¤²à¤¾à¤à¤šà¥‡ मारती हैं, हम आज à¤à¥€ उसका दà¥à¤²à¤¾à¤°, उसका सà¥à¤¨à¥‡à¤¹, उसका ममतà¥à¤µ की ठंडी छाà¤à¤µ चाहते हैं।बस अब जरà¥à¤°à¤¤ है,निशà¥à¤šà¤² मन से खà¥à¤²à¥‡ आकाश के नीचे आà¤à¤–ें बंद कर, इन ननà¥à¤¹à¥€à¤‚ बूà¤à¤¦à¥‹à¤‚ को अपने अनà¥à¤¦à¤° समा देने की, खो जाने की, पà¥à¤°à¥‡à¤® में सराबोर हो जाने की। ठीक वैसे ही, जैसे मलà¥à¤²à¤¿à¤•à¤¾ के हà¥à¤°à¤¦à¤¯ को छू गया था, आषाॠका पà¥à¤°à¤¥à¤® दिवस......
-नसरीन बानो