प्रेरक विचार

जीवन
जीवन की सारी घटनाओं में एक वेग होता है; जैसा कि बीज के अंकुरित होने में या जैसा कि काँटे के चुभने में, इन्हें कोई नहीं रोक सकता। कार्य खत्म होने के बाद इनकी त्वरा स्वयं ही नष्ट हो जाती है।

पिता
 à¤ªà¤¿à¤¤à¤¾ पुत्र के चेहरे पर कभी हार नहीं देखना चाहता, वह पुत्र से अधिक इन कारणों की तलाश करने लगता है। 

हानि
 à¤¹à¤® लाभ से हानि निकाल देते हैं तो भी उम्मीद रहती है कि कुछ न कुछ लाभ बेचेगा ही लेकिन जहाँ केवल हानि है वहाँ से लाभ तो कभी का लुप्त हो चुका होता है। 


कल्पनालोक
 à¤­à¥à¤°à¤®à¤£ का सबसे बड़ा लाभ यह है कि जो दृश्य कल्पनालोक की तरह हमारे मन में थे, उन्हें अब उनका वास्तविक शरीर मिल चुका होता है।

झोली
दया और भीख की झोली फैलाने से तो अच्छा है, जो लोग श्रम का मूल्य चुकाते हैं, उनकी शरण में जाया जाये। 

पिता
 à¤ªà¤¿à¤¤à¤¾ चाहे कितना भी बूढ़ा या असहाय क्यों न हो जाये लेकिन अपने बच्चों के प्रति प्रेम को मृत्युशया तक भी हृदय से सूखने नहीं देता है। 

यातना
 à¤œà¤°à¥‚री काम समय पर नहीं करने का नुकसान तो हम उठा चुके होते हैं, लेकिन इसका पछतावा भी हमें बाद में यातना देने में कोई कसर नहीं छोड़ता। 

पिता
 à¤ªà¥à¤¤à¥à¤° के चेहरे की थकान, पिता के मन की थकान बन जाती है। 

गलती
 à¤œà¤¬ आपने एक गलती को सुधारा है, यह कोई खास बात नहीं लेकिन जब आपने एक काम की अनेक गलतियों को सुधारा है, तो समझिये आपने बहुत कुछ सीख लिया है। 

अनभिज्ञ
 à¤à¤• बैलगाड़ी में बहुत कुछ लादा और उतारा जाता है। बैल पीछे की स्थिति से हमेशा अनभिज्ञ रहता है। एक नाकाम मनुष्य की स्थिति भी इन बैलों जैसी ही रहती है। 
    


लेखक परिचय :
डॉ. नरेश अग्रवाल
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