मैं तेज पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ की आà¤à¤¾ से
लौटकर छाया में पड़े कंकड़ पर जाता हूं
वह à¤à¥€ अंधकार में जीवित है
उसकी कठोरता साकार हà¥à¤ˆ है इस रचना में
कोमल पतà¥à¤¤à¥‡ मकई के
जैसे इतने नाजà¥à¤• कि वे गिर जाà¤à¤‚गे
फिर à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कोई संà¤à¤¾à¤²à¥‡ हà¥à¤ है
कहां से धूप आती है और कहां होती है छाया
उस चितà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° को सब कà¥à¤› पता होगा
वह उस à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¤¼à¥€ से निकलता है
और पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर जाता है बड़े डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤‚ग रूम में
देखो इस घास की चादर को
उसने कितनी सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° बनाई है
उस कीमती कालीन से à¤à¥€ कहीं अधिक मनमोहक।