बहà¥à¤¤ खà¥à¤µà¤¾à¤¬ देखे
तितलियों से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ रंगीन,
अंधी रातों में
à¤à¥à¤°à¤®à¥à¤Ÿ-से निकलते हैं
और मेरे मन की सà¥à¤¯à¤¾à¤¹ गलियों को
चà¥à¤‚धियाते फिरते।
अंधियारे सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¥‹à¤‚ में
à¤à¥€à¤‚गà¥à¤° के शोर में
अकà¥à¤¸à¤° ये खà¥à¤µà¤¾à¤¬ उगते थे।
बड़ा तजà¥à¤°à¥à¤¬à¤¾ था इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚
संकरी पगडंडियों पे चलते
फिसल कर कीचड़ में जब गिरते
मेरे खà¥à¤µà¤¾à¤¬
खà¥à¤¦ पर ही हà¤à¤¸à¤¤à¥‡ थे।
कà¤à¥€ थकते नहीं हैं
सलीकों में बंधे से
चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª निकलते हैं
बड़े-बड़े खेतों के मधà¥à¤¯ से
नदी तक पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ हैं
अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ में गà¥à¤®à¥€, गहरी,
ठहरी नदी की ठंडी
बेजान सतह को मलते हैं
मेरे खà¥à¤µà¤¾à¤¬ आà¤à¤–ें मूà¤à¤¦
अंधी रातों में
पानी पर चलते हैं।
कà¤à¥€ हताश नहीं होते
गीली मिटटी से लिबड़े
मà¥à¤à¤•à¥‹ महकाते हैं
कà¤à¥€ सूखी रेत बनकर
हवाओं संग
कोसों दूर उड़ जाते हैं
मेरे खà¥à¤µà¤¾à¤¬
रोज़ मेरी आà¤à¤–ों से डà¥à¤² जाते हैं।