मई 2014 : कुछ अनजानी बातें

1. ज्यादा रोते हैं पुरुष

यूँ आम धारणा तो यह है कि महिलाओं को रोना ज्यादा आता है, मगर हाल ही अमेरिका में हुए एक अध्ययन के मुताबिक खेल की दुनिया में महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा रोना आता है। चाहे जीत हो या फिर हार ही क्यों न हो, खिलाड़ियों की आँखों में आँसू आ ही जाते हैं। बायोकेमिस्ट विलियम एच फ्रे द्वारा किये गए अध्ययन के मुताबिक एक महीने में पुरुष औसतन 1.4 बार रोता है, जबकि महिलायें 5.3 बार रोती हैं। 12 साल की आयु तक महिलाओं और पुरुषों के रोने का अनुपात बराबर होता है। जब बात खेल की दुनिया की हो रही होती है तो यह अनुपात बदल जाता है। रोते समय पुरुष खिलाड़ियों को लोगों की परवाह नहीं होती इसलिए वे खुद को रोने की परमिशन दे देते हैं। पुरुषों के रोने की इनटेनसिटी बहुत हाई होती है।

2. पैसा दो, गाड़ी दौड़ाओ

ब्रिटेन के दूसरे बड़े शहर बर्मिघम में देश की पहली सशुल्क सड़क की शुरुआत हुई है। इस सड़क पर मनचाही स्पीड से वाहन दौड़ाने वाले लोगों को अलग-अलग शुल्क देना पड़ेगा। देश की दो अतिव्यस्त सड़कों को जोड़ने वाली इस सड़क पर जाने के लिए प्रति दो पौंड का शुल्क रखा गया है। इस सड़क का उपयोग करने वाली लारी ड्राइवरों (10 पौंड) और अन्य कार चालकों का कहना है कि अब समय सबसे ज्यादा कीमती होता जा रहा है, ऐसे में समय बचाने के लिए पैसे खर्च करने में बुराई नहीं है। इन सड़कों पर कोई स्पीड कैमरा भी नहीं लगा है।

3. 'तांत्रिक' को अनुदान

नार्वे की एक कथिक 'तांत्रिक' महिला को सरकारी संस्था की ओर से लाखों रुपयों का अनुदान दिया गया। इसके तहत उसे जादुई सामान बेचने व बनाने के लिए पाँच हजार पौंड (करीब चार लाख रुपए) दिए गए। 'दि नार्वेइयन इन्डस्ट्रियल एंड रीजनल डेवलपमेंट फण्ड' की ओर से लेना स्कार्निम नाम की इस 'तांत्रिका को यह रकम जंगलों में रहने वाले लोगों के जादुई सामान बनाकर बेचने के लिए दी गई है।' जीविका चलाने के लिए 33 साल की स्कार्निग इस रकम से लोगों को विभिन्न जादुई सामान बेचेंगी। उसके प्रमुख सामानों में अच्छे सपनों के लिए एक खास नाईटक्रीम, अनचाहे मामलों से बचने के लिए डे क्रीम और बुरी आदतों को बदलने के लिए पैरों की क्रीम शामिल हैं।

4. गटर पानी

क्या गटर का नाम सुनते ही आपके मन में कोई उत्साह जागता है? नहीं न। लेकिन कोलकता के गटरों में बहते उत्सर्जित पदार्थ हजारों लोगों के लिए न केवल उत्साह बल्कि रोजी-रोटी के जरिये हैं। स्वर्ण उद्योग के लिए प्रसिद्ध बोऊ बाजार इलाके से बहती हुई नालियों में सोने के कणों की तलाश करते लोग इस बात की पुष्टि करते है। लेकिन अब ये गरीब लोग इस बात से त्रस्त हैं कि अपराधिक गिरोह इन गटरों व नालियों की रंगदारी वसूलते हैं। बोऊ बाजार में खुले गटरों के पास कुदालों (Ade) और धातु छ्न्नों से लैस लोगों के झुण्ड के झुण्ड सुबह से शाम तक इस आशा से आते हैं कि सोने का एक टुकड़ा भी मिल जाए तो मेहनत सफल हो जाए।

5. बंदरों की नसबंदी

हिमाचल प्रदेश में शरारती बंदरों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए वन प्रशासन ने एक अनूठा उपाय सोचा है, जिसके तहत बंदरों की नसबंदी की योजना बनाई गई है। इसके लिए केन्द्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय का इंतज़ार है। इसके लिए बन्दर के जिस्म में एक माइक्रोचिप फिट की जाएगी ताकि इनकी पहचान आसानी से हो सके और वे दोबारा बंध्य होने से बचें रहें। प्रत्येक बन्दर को बंध्य करने और उसे माइक्रोचिप से लैस करने में कम से कम 35 डॉलर का खर्च आएगा। मुंबई स्थित एक कंपनी को माइक्रोचिप बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। जबकि हांगकांग और कनाडा की कुछ कम्पनियाँ बंध्यीकरण योजना में सहयोग देंगी। इसमें फ्रांस के पशु चिकित्सकों की भी मदद ली जाएगी।


लेखक परिचय :
मनोज कुमार सैनी
फो.नं. -9785984283
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