कविता लोक
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[ अगसà¥à¤¤ 2018 | मनोज कà¥à¤®à¤¾à¤° सैनी द्वारा लिखित ]किताबों में चिड़िया चहचहाती है,
किताबों में खेतियां लहलहाती हैं ।
किताबों में à¤à¤°à¤¨à¥‡ गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥‡ हैं,
परियों के किसà¥à¤¸à¥‡ सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥‡ हैं।
किताबों में .....
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[ नवमà¥à¤¬à¤° 2016 | के. पी. अनमोल द्वारा लिखित ]देखो पापा!
दूर पहाड़ी पर बैठी
इक चिड़िया गाती
देख-देख के हरियाली
वो इठलाती है
सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के मनोरम दृशà¥à¤¯à¥‹à¤‚
पे मà¥à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤¤à¥€ है .....
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[ नवमà¥à¤¬à¤° 2016 | अनà¥à¤°à¤¾à¤— बाजपेई द्वारा लिखित ]कविता-
जिन आà¤à¤–ों में सूरत
संजोये थे तेरी
अब उनमें ही नींदों
के साठमिलेंगे
तू चाहे न चाहे
यूठगाहे-बगाहे
किसी रासà¥à¤¤à¥‡ .....
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[ जून-जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ 2015 संयà¥à¤•à¥à¤¤ अंक | लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जैन द्वारा लिखित ]à¤à¤• अनवरत संघरà¥à¤·
जिसके साथ जूठरही है
हर सà¥à¤¬à¤¹ हर शाम
वो जलकर जी रही है
उमà¥à¤®à¥€à¤¦ की किरण लिà¤
सफलता की आस लिà¤
जीती जा रही है
लेकिन अपनों से ही
छली .....
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[ जून-जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ 2015 संयà¥à¤•à¥à¤¤ अंक | राघव शरà¥à¤®à¤¾ द्वारा लिखित ]मेरे तन को वसन नही‚
अमà¥à¤¬à¤° साया बन जाता है।
धरती के पावन आà¤à¤šà¤² की‚
ममता निधि लà¥à¤Ÿ जाता है।
जब हो जाये रात अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥€‚
तारे चाà¤à¤¦ दीपà¥à¤¤ चमकते हैं। .....
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[ मई 2015 | बलजीत सिंह द्वारा लिखित ]तà¥à¤® कौन हो?
किसी फिलà¥à¤®à¥€ सितारे के
नूरे नज़र तो नहीं हो
और ना ही हो तà¥à¤®
किसी सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ लेखक के
पोते – पड़पोते
शायद
पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° à¤à¥€ नहीं होगे तà¥à¤® .....
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[ मई 2015 | मनीषा पराशर द्वारा लिखित ]जिनà¥à¤¦à¤—ी,
ना तूने मà¥à¤à¥‡ à¤à¤• पल जीने दिया
ना चैन से मरने दिया,
तूने तो खूब खेल खेला मेरे साथ
पर मà¥à¤à¥‡ à¤à¤• बार à¤à¥€ ,
खेल कर
हराने तक का à¤à¥€ मौका ना दिया।
जब .....
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[ मई 2015 | दिलीप कà¥à¤®à¤¾à¤° सिंह द्वारा लिखित ]समय की à¤à¤‚à¤à¤¾ में जीवन के पात बिखर गये
मैं था ‚ तà¥à¤® थी चाà¤à¤¦ और बदली à¤à¥€ वही थी
पर न कसक थी‚ न आगà¥à¤°à¤¹ था
न कोई उनà¥à¤®à¤¾à¤¦ था‚ न कोई अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ थी
तà¥à¤® à¤à¥€ चà¥à¤ª थी‚ .....
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[ अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 2015 | बलजीत सिंह द्वारा लिखित ]बहà¥à¤¤ खà¥à¤µà¤¾à¤¬ देखे
तितलियों से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ रंगीन,
अंधी रातों में
à¤à¥à¤°à¤®à¥à¤Ÿ-से .....
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[ अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 2015 | बलजीत सिंह द्वारा लिखित ]वीराना चारों तरफ
चीखता à¤à¤•à¤¾à¤‚त मेरे à¤à¥€à¤¤à¤°
इमारतों को छूते विमान
और
इनका असहनीय शोर
खो जाता à¤à¥€à¤¤à¤°
चीखते सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¥‡ में
यहाठकी सड़कें .....
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[ मारà¥à¤š 2015 | अमिताठविकà¥à¤°à¤® दà¥à¤µà¤¿à¤µà¥‡à¤¦à¥€ द्वारा लिखित ]लड़का और à¤à¤• लड़की
उमà¥à¤° का कोई पता नहीं
उनकी तà¥à¤µà¤šà¤¾ से उमà¥à¤° का पता नहीं चल रहा था
कपड़े थे
गंदे
पर दाग अचà¥à¤›à¥‡ थे
जैसे कि à¤à¤• गरीब के होने चाहिà¤
मांग रहे .....
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[ मारà¥à¤š 2015 | अमिताठविकà¥à¤°à¤® दà¥à¤µà¤¿à¤µà¥‡à¤¦à¥€ द्वारा लिखित ]जब हो जाता है बंद संवाद
मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ से
तो चल पड़ता है वह
जंगलों में
चाह नहीं उसे बà¥à¤¦à¥à¤§ बनने की
वह तो चाहता है अब
जानवरों को दोसà¥à¤¤ बनाना
सीखना वहाठके .....
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[ फरवरी 2015 | पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿ "अजà¥à¤žà¤¾à¤¤" द्वारा लिखित ]कà¥à¤› तो है कहीं, ये जो थोड़ा पà¥à¤¯à¤¾à¤°-सा है
नशा है तेरा, चाहत या इक ख़à¥à¤®à¤¾à¤°-सा है
मिला करता है मचलकर रोज ही तू मà¥à¤à¤¸à¥‡
रहता बेवक़à¥à¤¤ फिर à¤à¥€ तेरा इंतज़ार-सा है
न .....
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[ फरवरी 2015 | महावीर सिंह गà¥à¤°à¥à¤œà¤° द्वारा लिखित ]हम शिकà¥à¤·à¤• à¤à¤¾à¤µà¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤ के
नित नव पà¥à¤°à¤œà¥à¤žà¤¾ उपजायेंगे
जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कृषि की फसलों पर
हम अमृत रस बरसायेंगे।
à¤à¤¾à¤°à¤¤ की पावन गरिमा को
अकà¥à¤·à¥à¤£à¥à¤£ हमेशा .....
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[ जनवरी 2015 | डिमà¥à¤ªà¤² गौर द्वारा लिखित ]बाधाओं को पार करÂ
राही तà¥à¤® बढ़ते जानाÂ
कदम कदम पर होगी मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤²Â
फिर à¤à¥€ तà¥à¤® ना घबराना |
नयी सोच ,नठजजà¥à¤¬à¥‡ सेÂ
नाविक, आगे चलते जानाÂ
तूफानी लहरों से .....
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[ जनवरी 2015 | पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿ "अजà¥à¤žà¤¾à¤¤" द्वारा लिखित ]सोचती हूà¤, अक़à¥à¤¸à¤° ही बैठी-बैठी
कि कà¥à¤¯à¥‚ठकरती हूठमैं, तà¥à¤®à¤¸à¥‡ बातें,
बातें जो à¤à¤•à¤¤à¤°à¤«à¤¼à¤¾ हैं, बेसिरपैर की
बातें कà¥à¤› अनसà¥à¤¨à¥€ और अनà¥à¤¤à¥à¤¤à¤°à¤¿à¤¤ ही...
जिनका .....
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[ जनवरी 2015 | के. पी. अनमोल द्वारा लिखित ]इस तरह नज़दीकियों का सिलसिला अचà¥à¤›à¤¾ नहीं
रोज़ का मिलना-मिलाना बाख़à¥à¤¦à¤¾ अचà¥à¤›à¤¾ नहीं
मसअले जो हैं हमारे बैठके सà¥à¤²à¤à¤¾à¤à¤ हम
दो दिलों के बीच इतना फ़ासला अचà¥à¤›à¤¾ .....
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[ दिसमà¥à¤¬à¤° 2014 | पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿ "अजà¥à¤žà¤¾à¤¤" द्वारा लिखित ]तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ और मेरे बीच
à¤à¤• सेतॠहà¥à¤† करता था
जिस पर चल रोजाना ही
विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ की गहरी नींव
और सà¥à¤¨à¥‡à¤¹-जल की फà¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ में
गोता खाते हà¥à¤ हमारे शबà¥à¤¦
मचलकर .....
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[ दिसमà¥à¤¬à¤° 2014 | के. पी. अनमोल द्वारा लिखित ]बस यही इतà¥à¤®à¤¿à¤¨à¤¾à¤¨ है बाबा
के सफ़र में ढलान है बाबा
हर क़दम पर सवाल उठà¥à¤ ेंगे
ज़िनà¥à¤¦à¤—ी इमà¥à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¨ है बाबा
इक परिंदा कफ़स में' सोच रहा
क़ैद कà¥à¤¯à¥‚ठआसमान है .....
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[ दिसमà¥à¤¬à¤° 2014 | विशाल वरà¥à¤®à¤¾ लखनवी द्वारा लिखित ] बेटी
मेरी à¤à¥€ जमी है , है मेरा आसमा ,
मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ जीने का अधिकार चाहिà¤
माà¤-पापा आप दोनों का थोड़ा सा पà¥à¤¯à¤¾à¤° चाहिठ।
न तोड़िठमà¥à¤à¥‡ मैं नाजà¥à¤• सी .....
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