लेख

महंगी होती शादी धन और अन्न की बर्बादी: देवेन्द्रराज सुथार


आजकल समाज में महंगी शादियों का फैशन-सा चल पडा है। इन भड़कीली व तड़क-भड़क वाली शादियों में जहाँ एक ओर बड़ी मात्रा में अन्न का दुरुपयोग हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर धन बर्बादी के साथ बिजली को अंधाधुंध तरीके से फूंका जा रहा है। शादियों से पहले महंगे-महंगे आमंत्रण-पत्र व क़ीमती उपहार देकर सगे-संबंधियों व मेहमानों को बुलाया जाने लगा है। तो वहीं इन शादियों के आयोजन के लिए एक बड़ी नामी पांच सितारा होटल बुक की जाने लगी है. जिसमें करोड़ों रुपये खर्च कर शादी का सेट खड़ा किया जा रहा है।
मेहमानोें के बैठने के लिए एक सुन्दर व खूबसूरत सोफा लगाया जा रहा है। वहीं शादी के बाद खाने के रुप में अनगिनत भोज्य पदार्थो और तरह-तरह की मिठाईयों से सजी थैलियां परोसकर मेहमानों को मोहित किया जा रहा है। खाने के बाद नाचने के लिए एक सुप्रसिद्घ डी.जे. व लाउड स्पीकर पर अश्लील व अमार्यादित संगीत बजाकर मेहमानों को नचाया जाने लगा है।

इस तरह उच्च वर्ग द्वारा शाही अंदाज में आयोजित की जा रही इन शादियों को देखकर मध्यम व निम्न वर्ग भी शादियों में पैसे को पानी की तरह बहाने से जरा भी नहीं हिचकिचा रहा है। लोग शादी में अपना स्तर‚ रूतबा और झूठी शानो-शौकत का प्रदर्शन करने के लिए कर्ज लेकर भी महंगी शादियां आयोजित कर रहे हैं। इन्हीं शादियों में कन्यादान के नाम पर सोना-चांदी‚ गाड़ी बंगला इत्यादि के रुप में लाखों-करोडों का दहेज भी दिया जा रहा है। आम तो आम हमारे देश के नेताओं के कई उदाहरण ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी संतानों की शादियों में रिर्कोड तोड़ पैसा बहाने में कोई कसर नही रखी है।

आखिर क्या मतलब है इस तरीके से महंगी शादियों के आयोजन के पीछे? जहाँ देश में एक ओर भयंकर भूखमरी के कारण लाखों बेसहारा व गरीब लोग एक वक्त के खाने को तरस रहे हों, वहां शादियों में अन्न की बड़े पैमाने पर बर्बादी करना कौनसी बुद्धिमता है? जहाँ देश में लोग धन के लिए चोरी-चकारी व लूट-खसोट करने को मजबूर हो रहे हैं, वहां अरबों का खर्च करना क्या वाजिब है?
विवाह हमारे सोलह संस्कार में से एक है, जिसे सात जन्मों का बंधन माना जाता रहा है। जिसे पावनता‚ पुनिता व सादगी का पर्याय समझा जाता है। वही संस्कार आज शोर-गुल व हो-हल्ला में तब्दील होता जा रहा है। दीगर बात यह भी है कि इन शादियों में सात जन्मों का साथ निभाने की कसम खाने वाले चंद महीनों के बाद ही तलाक की मांग करने लग जाते हैं। हमारी भारतीय संस्कृति व संस्कार पद्धति से संपन्न विवाह इतने सालों बाद भी तरो-ताजा है, अटूट व अखंडित है।

बेशक पश्चिमीकरण आज हमें चहुंओर से घेर रहा है और जाहिर-सी बात है कि शादियां भी इसके प्रभाव से अछूती नही रह पाई हैं। जरुरी है कि हम हावी होते विदेशी संस्कृति के मर्ज का समय रहते उचित ईलाज ढूंढ लें। विवाह को आदर्श के रुप में प्रस्तुत करें और ता-उम्र साथ रहकर जीवन हमसफर का हर परिस्थिति में साथ निभायें। आधुनिकता व चकाचौंध के चक्रव्यूह से बाहर निकलकर शादियों में मितव्ययता के उदाहरण पेश करें।


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