इतिहास

भारतीय चिकित्सा विज्ञान

    भारतीय चिकित्सा विज्ञान का उद्गम वैदिक संहिताओं में निहित है । वैदिक ग्रंथो के बाद भारतीय औषधिशास्त्र के पिता चरक तथा महान शल्य विज्ञानी सुश्रुत और महात्मा बुद्ध के चिकित्सक जीवक की कृतियों में भारतीय चिकित्सा का गूढ ज्ञान भरा हुआ है ।

    प्राचीन चिकित्सा विज्ञान दो रूपो में विकसित हुआ – आयुर्वेद चिकित्सा और शल्य चिकित्सा । आयुर्वेद चिकित्सा का जनक चरक को माना जाता है , जबकि शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुत थे । आयुर्वेद के क्षेत्र में धन्वन्तरी का नाम भी उल्लेखनीय है ।

भारतीय चिकित्सा विज्ञान का विकास

  1. आयुर्वेद :- आयुर्वेद चिकित्सा का मूल आधार ‘त्रिदोष’ की अवधारणा है ।भारतीय आयुर्वेदचार्यों का मत है कि वात, पित्त और कफ नामक मूल द्रव्यों में असंतुलन होने पर शरीर रोगग्रस्त हो जाता है । इसी प्रकार शारीरिक क्रियाओं का संचालन भी पंच वायु से होता है । उड़ान नामक वायु वाक शक्ति को जन्म देती है । प्राण वायु श्वसन क्रिया तथा पाचन क्रिया को सरल बनाती है । समान वायु चयापचय की क्रियाओं को नियंत्रित करती है । अपान वायु माल विसर्जन को संभव बनाता है । व्यान वायु रक्त परिभ्रमण तथा शरीर की गतियों पर नियंत्रण रखता है ।
  2. शल्य विज्ञान :- प्राचीन काल में भारतीय शल्य विज्ञानी शल्य चिकित्सा में भी दक्ष थे । गुप्तकाल में शल्य चिकित्सक कपाल छेदक , अंग-भंग , मोतियाबिंद निकालना आदि जटिल कार्यों में निपुड़ थे । सुश्रुत ने आज से 2,600 वर्ष पूर्व एक रोगी की नाक की सर्जरी ठीक उसी प्रकार से की थी जिस प्रकार से आज के प्लास्टिक सर्जन करते हैं ।

 

 


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