अनंत विश्व ब्रम्हाण्ड के सिद्धांत के जनक:-गिओर्डेनो बुर्नो

आज यह बात सभी को मालूम है कि “पृथ्वी” सूर्य के चारों ओर चक्कर काटती है और अपनी धुरी पर भी घूमती है। मगर यूरोपवासियों  के सामने जब पंद्रहवीं सदी के दौरान यही बात “निकोलस कोपर्निकस” नामक वैज्ञानिक ने कही तो चर्च सत्ता ने इसका जमकर विरोध किया और उसके विचारों को धर्म विरोधी बताया। सोलहवीं सदी में जब गैलिलियो ने कोपर्निकस की बात को अपना समर्थन दिया तो इसे अक्षम्य अपराध ठहराया गया और गैलिलियो को जेल जाना पड़ा। बात यहीं नहीं रुकी, विश्व के पहले विज्ञान प्रसारक- तत्वज्ञानी गिओर्डेनो बुर्नो को धर्मांध चर्च सत्ता के तत्कालीन राजनेताओं ने जिन्दा जलाकर ही राहत की साँस ली थी। 16वीं शताब्दी में विज्ञान संबंधी नई जनजागृति पैदा करने का महान कार्य गिओर्डेनो बुर्नो ने किया था। जिस प्रकार इटली में आविष्कारों और अनुसंधान के लिए गैलिलियो ने दूरदर्शी जैसे यंत्रों का उपयोग किया। ठीक उसी à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° ब्रूनो ने लोगों के बीच जाकर 'सूर्य केंद्र ब्रम्हाण्ड' सिद्धांत पर व्याख्यान दिया और कई विज्ञान ग्रंथों की रचना भी की।
      गिओर्डेनो बुर्नो का मूल नाम फिलिप्पो ब्रूनो था, उनका जन्म इटली देश के “नेपल” नामक गाँव में 30 अप्रैल सन 1548 को एक सैनिक परिवार में हुआ था। ब्रूनो की प्रारंभिक शिक्षा “सेंट डोमिनीको मोर्नेस्टारी” नामक नेपल गाँव के मशहूर स्कूल में पूरी हुई। उन दिनों में मशहूर तत्वज्ञानी सेंट थॉमस अक्कीनास जैसे अनेक शिक्षकों ने ब्रुनो को पढ़ाया। बचपन में मेधावी छात्र होने से ब्रुनो को विज्ञान के मूल सिद्धांत पर चर्चा करने में बेहद रूचि थी। ब्रूनो को हर तत्व के पीछे के कारणों को जानने की प्रबल लालसा थी। इसी कारण उनके स्कूल में उन्हें “गिओर्डेनो” की उपाधि से नवाजा, उम्र के सात ब्रुनो ने सम्पूर्ण इटली, फ्रांस, इंग्लैण्ड और जर्मनी का सफर किया। सन 1571 में जब वे फ्रांस में थे, तब वहाँ के हेनरी नामक राजा ने उन्हें कॉलेज में नौकरी दी। सन 1583 में ब्रुनो लन्दन गए, वहाँ उन्होंने तीन साल बिताया। ब्रुनो के जीवन के खुशहाली का दौर वही था। इंग्लैंड में ब्रुनो ने विज्ञान एवं तत्वज्ञान की उच्च शिक्षा ली और उसमें अनुसंधान करके 6 विज्ञान ग्रंथों की रचना की। इन ग्रंथों में उन्होंने निकोलस कोपर्निकस के सूर्य-केंद्र ब्रम्हाण्ड सिद्धांत का समर्थन किया था। सन 1591 में à¤¬à¥à¤°à¥à¤¨à¥‹ की पहली पुस्तक “डि-ट्रिप्लिकीमिनिमो” प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने लिखा था, कोई भी इंसान जो तत्वज्ञान एवं विज्ञान पर विश्वास रखता हो, उसे हर तत्व की ओर शक की निगाहों से देखना जरुरी है।

ब्रम्हाण्ड सिद्धांत का प्रसार―
      कोपर्निकस के पहले तक लोग यही मानते थे कि सूर्य, चन्द्र और तारे पृथ्वी के चारों ओर घूमते है। इस सिद्धांत को जिओसेंट्रिक ब्रम्हाण्ड सिद्धांत कहा जाता था और इस सिद्धांत को गलत कहा, कोपर्निकस ने अपना एक शोध “डि- रिवान्युशन्स आर्विअम” नामक पुस्तक में प्रकाशित किया। इसके तुरंत बाद कोपर्निकस का स्वर्गवास हुआ। गिओर्डेनो बुर्नो को यही शोध मान्य था। उन्होंने हेलिओ सेंट्रिक सेंटर्ड सुर्यकेंद्र ब्रम्हाण्ड सिद्धांत का प्रचार एवं प्रसार किया। इसके लिए उन्होंने यूरोप के कई देशों का दौरा किया और लोगों को इस अवधारण से अवगत कराया, “हेलिओ सेंट्रिक यूनिवर्स सिद्धांत” का महत्व आम लोगों को समझाने के लिए ब्रुनो ने बीस से भी विज्ञान ग्रंथों की रचना की।

विज्ञान के लिए बलिदान―
     ब्रुनो ने “अनन्त विश्व ब्रम्हाण्ड” का सिद्धांत भी à¤ªà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ किया था। उनके इस सिद्धांत की वैज्ञानिक 'विललियम गिल्बर्ट' और 'थॉमस हारियस' ने तारीफ की। सन 1576 में ब्रुनो पर गुनाह स्वीकारने के लिए दबाव डाला गया। कोर्ट की सजा से बरी होने के लिए ब्रुनो रोम पहुंचे, लेकिन उनका जिद्दी स्वभाव सच्चाई के आगे झुकने के लिए तैयार ही नहीं था। अदालत ने ब्रुनो को जिन्दा जलाकर मार डालने की सजा सुनाई, 16 फरवरी 1600 को रोम की एक जेल में गिओर्डेनो बुर्नो ने हँसते-हँसते बलिदान देकर मौत को गले लगा लिया।

―साभार:-“विश्व के आदर्श वैज्ञानिक”


लेखक परिचय :
मनोज कुमार सैनी
फो.नं. -9785984283
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