à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ चिकितà¥à¤¸à¤¾ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ चिकितà¥à¤¸à¤¾ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का उदà¥à¤—म वैदिक संहिताओं में निहित है । वैदिक गà¥à¤°à¤‚थो के बाद à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ औषधिशासà¥à¤¤à¥à¤° के पिता चरक तथा महान शलà¥à¤¯ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ सà¥à¤¶à¥à¤°à¥à¤¤ और महातà¥à¤®à¤¾ बà¥à¤¦à¥à¤§ के चिकितà¥à¤¸à¤• जीवक की कृतियों में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ चिकितà¥à¤¸à¤¾ का गूढ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† है ।
पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ चिकितà¥à¤¸à¤¾ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ दो रूपो में विकसित हà¥à¤† – आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ चिकितà¥à¤¸à¤¾ और शलà¥à¤¯ चिकितà¥à¤¸à¤¾ । आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ चिकितà¥à¤¸à¤¾ का जनक चरक को माना जाता है , जबकि शलà¥à¤¯ चिकितà¥à¤¸à¤¾ का जनक सà¥à¤¶à¥à¤°à¥à¤¤ थे । आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में धनà¥à¤µà¤¨à¥à¤¤à¤°à¥€ का नाम à¤à¥€ उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय है ।
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ चिकितà¥à¤¸à¤¾ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का विकास
- आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ :- आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ चिकितà¥à¤¸à¤¾ का मूल आधार ‘तà¥à¤°à¤¿à¤¦à¥‹à¤·’ की अवधारणा है ।à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का मत है कि वात, पितà¥à¤¤ और कफ नामक मूल दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में असंतà¥à¤²à¤¨ होने पर शरीर रोगगà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ हो जाता है । इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° शारीरिक कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं का संचालन à¤à¥€ पंच वायॠसे होता है । उड़ान नामक वायॠवाक शकà¥à¤¤à¤¿ को जनà¥à¤® देती है । पà¥à¤°à¤¾à¤£ वायॠशà¥à¤µà¤¸à¤¨ कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ तथा पाचन कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ को सरल बनाती है । समान वायॠचयापचय की कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं को नियंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ करती है । अपान वायॠमाल विसरà¥à¤œà¤¨ को संà¤à¤µ बनाता है । वà¥à¤¯à¤¾à¤¨ वायॠरकà¥à¤¤ परिà¤à¥à¤°à¤®à¤£ तथा शरीर की गतियों पर नियंतà¥à¤°à¤£ रखता है ।
- शलà¥à¤¯ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ :- पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ शलà¥à¤¯ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ शलà¥à¤¯ चिकितà¥à¤¸à¤¾ में à¤à¥€ दकà¥à¤· थे । गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤•à¤¾à¤² में शलà¥à¤¯ चिकितà¥à¤¸à¤• कपाल छेदक , अंग-à¤à¤‚ग , मोतियाबिंद निकालना आदि जटिल कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में निपà¥à¥œ थे । सà¥à¤¶à¥à¤°à¥à¤¤ ने आज से 2,600 वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ à¤à¤• रोगी की नाक की सरà¥à¤œà¤°à¥€ ठीक उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से की थी जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से आज के पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• सरà¥à¤œà¤¨ करते हैं ।