रोज सà¥à¤¬à¤¹ बिन बà¥à¤²à¤¾à¤
सरक आता है
खिड़की में से
उगने लगती हैं उमà¥à¤®à¥€à¤¦à¥‡à¤‚
फैलने लगती हैं अनायास ही
मन के आà¤à¤—न में उसकी जड़ें
घर में जगमगाती रोशनी की तरह
चमक उठता है चेहरा मेरा
फूल à¤à¥€ तो बेशरम-से
बेà¤à¤¿à¤à¤• खिल उठते हैं.
पर हर à¤à¤• पहर के साथ ही
संकीरà¥à¤£ होने लगती है
उसकी à¤à¥‚मि
ओà¤à¤¿à¤² हो जाना चाहता है वो
नज़रों से
क़ि अब दूर देश में होगा
à¤à¤• और दिन.
मैं फिर à¤à¥€ दौड़ती हूà¤
उसके पीछे..बेतहाशा, बेसाखà¥à¤¤à¤¾
सारे कमरों, आà¤à¤—न,
बगीचे की
चारदीवारी को लाà¤à¤˜à¤¤à¥€ हà¥à¤ˆ
टकराती हूठदीवारों से
गिरती हूà¤, लड़खड़ाकर
खीजकर लगाती हूà¤....
à¤à¤• आवाज़
कि रोक सकूà¤
कà¥à¤› और पल
जी सकूà¤, थोड़ी और ज़िंदगी
पर उसे टोका जाना
कब रास आया है, à¤à¤²à¤¾ …!
नहीं देखता वो पलटकर
किसी फिलà¥à¤®à¥€ हीरो की तरह
और न ही सर पर
फेरता है कोरा आशà¥à¤µà¤¾à¤¸à¤¨
पर मैं जानती हूà¤
वो आà¤à¤—ा
उसे आना ही होगा
यही तो तय हà¥à¤† था
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ बनाते समय...!
हाà¤, रोज ही उगता है
मà¥à¤à¤®à¥‡à¤‚ à¤à¥€ à¤à¤• सूरज
जो सांठहोते ही
गà¥à¤®à¤¸à¥à¤® हो डूब जाता है कहीं !
(उमà¥à¤®à¥€à¤¦ का सूरज, न जाने उगकर डूबता है या डूबकर उगता है ?)